राजयोग व राजनीति में सफलता

  1. “राजयोग” सामान्य अर्थ  में :- राजकुल में अथवा अन्य कुल में उत्पन्न व्यक्ति, राज्याधिकार अथवा शासनाधिकार या  समतुल्य अधिकार व सुख का उपभोग – उपयोग करना होता है | प्राचीन काल में जो महत्त्व  राजा, महाराजा, बादशाहों का हुआ करता था वही महत्त्व आज राजनीतिक नेताओं को प्राप्त है | वर्तमान में राजाओं का युग तो रहा नहीं, अतः शासन प्रणाली के परिवर्तन के स्वरूप राज योग पर विचार करते समय देश काल और  परिस्थितियों को दृष्टिगत रखना आवश्यक है | किसी देश, राज्य, समाज की उन्नति, प्रगति व समृद्धि राजनीतिक नेताओं की योग्यता, दूरदर्शिता व सूझबूझ पर निर्भर करती है | विद्वान, साहसी व दूरदृष्टि रखने वाले नेताओं के मार्गदर्शन में समाज तीव्र गति से उन्नति कर सुख व संपन्नता प्राप्त करता है |
ध्यान रहे भ्रष्ट, चरित्रहीन, अकर्मण्य व स्वार्थ परायण नेता राज, समाज व देश को पतोन्मुखी  बनाते हैं | ज्योतिष में जिन ग्रह योगों की सृष्टि से जातक को राजा, राज्याधिकार, शासनाधिकार, उच्च पद, धन व समतुल्य ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है | कतिपय विशिष्ट नाम वाले राजयोगों का  उल्लेख भी ज्योतिष के अनेक ग्रंथों में पाए जाते हैं | इन ग्रह योगों वाले जातक राजा अथवा उच्च शासन अधिकारी, सुखी, पराक्रमी व ऐश्वर्यशाली  होते हैं |
जन्म कुंडली में 12 भाव में राशि के प्रतीक अंक होते हैं | इनमें लग्न, चतुर्थ, सप्तम्, व दशम्  भाव को केंद्र तथा लग्न, पंचम् व नवम् भाव को त्रिकोण कहते हैं | जब केंद्र स्थानों के स्वामियों का त्रिकोण स्थान के स्वामी से किसी प्रकार का संबंध स्थापित होता है या कोई एक ही ग्रह केंद्र और त्रिकोण दोनों से अपना संबंध स्थापित करता है तो राजयोगों की सृष्टि होती है | इसके अतिरिक्त नवमेश व दशमेश की युति दशम्  में राजयोग कारक, सुखेश गुरु का पंचमेश मंगल के साथ संबंध राजयोग कारक है | ऐसा व्यक्ति राजा या राजसी  पद प्राप्त करता है | सम्मान व प्रतिष्ठा की भी वृद्धि होती है | लग्नेश का संबंध केंद्र या त्रिकोण के स्वामियों के साथ बने तो राजयोग निश्चित होता है | सप्तमेश व नवमेश में परस्पर संबंध हो तो राजयोग बनता है और  इसके अतिरिक्त उस ग्रह की दशा, अंतर्दशा में तदानुसार धन, ऐश्वर्य व शासनाधिकार  आदि की प्राप्ति होती है | वर्तमान में इन राजयोग कारक ग्रहों के बला बल एवं स्थिति के आधार पर राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, राज्यपाल, मंत्री, राजदूत, विधायक, सांसद, प्रशासनिक अधिकारी अथवा शासकीय कर्मचारी का पद प्राप्त करते हैं | पर इनमें योग कारक ग्रहों के  साथ साथ जातक के कुल का भी अध्ययन करना चाहिए |


स्वर्गीय श्री लाल बहादुर शास्त्री

अध्ययन की दृष्टि से उदाहरण के तौर पर यहां हम एक आदर्श, चरित्रवान, न्याय की मूर्ति, कर्तव्यनिष्ठ, देशभक्त नेता भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री लाल बहादुर शास्त्री जी की जन्म कुंडली दे रहे हैं |जिसमें उपरोक्त योगों को आप भली-भांति देख सकते
हैं |

जन्म 2 अक्टूबर 1904 समय 11: 49 प्रातः ,स्थान – इलाहाबाद

प्रस्तुत जन्म कुंडली में लग्नेश गुरु पंचमस्थ होकर नवम भाव में स्थित पंचमेश व व्ययेश मंगल,लाभेश व षष्ठेेश स्वग्रही शुक्र  लग्नेश को देख रहा है | ऐसा जातक स्वयं अपने भाग्य का निर्माता होता है, स्वस्थ,बलि, साहसी, भाग्यशाली लक्ष्यवेधी, यशस्वी होता है | दूसरी तरफ देखिए धनेश व  पराक्रमेश स्वराशि का  शनि,लाभ स्थान व लाभेश  शुक्र को देखता है, जो अपनी दशा में धन, मान-सम्मान, पद -प्रतिष्ठा की वृद्धि करने वाला है | दशम भाव में नवमेश सूर्य व दशमेश बुध नवम भाव में अंतर राशिय संबंध बनाकर  राजयोग बना कर उच्चपद व  अधिकार देता है | अष्टमेश चंद्रमा का सप्तम में स्थित होना योग को  दुर्बल बनाता है | दशमेश व नवमेश की युति ने प्रधानमंत्री के पद तक पहुंचाया |

लेखक –          ज्योतिर्विद्ः घनश्यामलाल स्वर्णकार|
अधिक जानकारी के लिये परामर्श करें ज्योतिर्विद् घनश्यामलाल स्वर्णकार  से।


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