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Showing posts with the label कुंडली

जानें कब होगा आपका भाग्योदय

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जन्मकुंडली अर्थात मनुष्य के जीवन का पूर्ण सार जिसे राशी एवं नक्षत्रों के आधार पर बांटा गया है  । कुंडली में ग्रहों की स्थिति अच्छी होना तो आवश्यक है ही, भाग्य से संबंधित ग्रहों का शुभ होना तथा उनकी दशान्तर्दशा  का सही समय पर व्यक्ति के जीवन में आना भी उतना ही आवश्यक होता है अन्यथा कुंडली अच्छी होने पर भी यदि कार्य करने की उम्र शत्रु, नीच या पाप प्रभावी  ग्रहों की दशान्तर्दशा में ही व्यतीत हो रही हो तो, लाख प्रयत्न करने के बाद भी उसका फल नही मिल पता | ऐसा क्यों ? प्रत्येक जातक की  कुंडली में  नवम् भाव   को भाग्य भाव भी  माना जाता है। इस भाव में जिस राशि का आधिपत्य होता है, उसके अनुसार  भाग्योदय   का वर्ष तय किया जाता है।इसके साथ-साथ नवम् भाव में स्थित ग्रह और नवम्  भाव पर अन्य ग्रहों की दृष्टि भी भाग्योदय में सहायक सिद्ध होती हैं | शुभ ग्रह का नवम् में स्थित होना भी प्रायः कम उम्र में भाग्योदय को दर्शाता  है | कुंडली में कुल 12 भाव होते हैं और ये 12 राशियों का प्रतिनिधित्व करते हैं | हर भाव का अपना महत्व होता...

जन्म कुंडली में लग्नेश का महत्व

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जन्म कुंडली में लग्नेश के साथ किसी भाव का स्वामी राशि परिवर्तन करें या दूर  दृष्टि संबंध करें तो उस भाव के जातक को अच्छा फल मिलता है | – यदि धनेश के साथ लग्नेश का संबंध हो तो जातक को अच्छी संपत्ति की प्राप्ति होती है तथा पारिवारिक सुख अच्छा मिलता है – यदि तीसरे भाव  के साथ लग्नेश का संबंध होता है तो  जातक प्रत्येक कार्य में पराक्रमी होता है तथा उसे भाई बहन का सुख मिलता है – चतुर्थेश और लग्नेश का संबंध जातक को भवन वाहन सुख अच्छा देता है|  मात्र सुख व मित्र सुख अच्छा मिलता है -पंचमेश का लग्नेश से संबंध जातक को पुत्र पुत्र आदि का सुख देता है शिक्षा में अच्छी सफलता मिलती है उसके कई अनुयाई होते हैं वह संस्थाओं का नेतृत्व करता है – षष्ठेश वह लग्नेश का संबंध होने पर जातक को शत्रु पक्ष पर विजय प्राप्त होती है | शत्रु मैत्री का हाथ बढ़ाता है मुकदमा बाजी में उसे सफलता मिलती है | ननिहाल पक्ष से लाभ होता है – सप्तम और  लग्नेश का संबंध जातक को सुंदर और सुशील पत्नी या पति का योग बनाता है|  विवाहित जीवन आनंद होता है –  अष्टम भाव और  लग्न...

पुष्य नक्षत्र – एक सहज चिंतन

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  पुष्य नक्षत्र का स्वामी ग्रह शनि और देवता बृहस्पति है | यह नक्षत्रों में राजा माना जाता है | इसमें समस्त कार्यों की सिद्धि होती है |पुष्य – चर-स्थिर , शांति, उत्सव सम्बन्धी कार्य, विवाह को छोड़कर शुभ होते हैं |पुष्य नक्षत्र में तारों की संख्या 3 होती है | गुरूवार को पुष्य नक्षत्र होने से समस्त कार्यों में  सिद्धिदायक , अमृत सिद्धि योग होता है |ग्रहों की स्थापना पुष्य नक्षत्र में आना  शुभ रहता है | आकाश में कांति मंडल को 27 तुल्य भागों में विभाजित कर प्रत्येक खंड में आने वाले तारों के समूह को एक नक्षत्र की संज्ञा दी गयी है |प्रत्येक नक्षत्र समूह के किसी प्रमुख तारा को उस नक्षत्र का केंद्र मान कर वेधादि कार्य किये जाते हैं , जिसे योग तारा कहा जाता है | पुष्य नक्षत्र पाप ग्रह से दृष्ट या युक्त होने पर भी पुष्य नक्षत्र बलवान होता है जैसे समस्त जीवों में सिंह बलवान होता है , उसी प्रकार समस्त नक्षत्रों में यह बली  होता है |इसलिए गोचर से इस नक्षत्र में चंद्रमा के विपरीत होने पर भी कार्यों की सिद्धि बलवत्ता के कारण होती है | पुष्य नक्षत्र  नक...

जानें ग्रहों की राशि और उनकी महादशा

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किस ग्रह की राशि कौन सी है व  इनकी महादशा कितने वर्ष की होती है। आइए जानें। सूर्य की सिंह राशि, मंगल की मेष व वृश्चिक, बुध की मिथुन व कन्या, गुरु की धनु व मीन, शुक्र की वृषभ व तुला, शनि की मकर व कुंभ राशि होती है। सूर्य की मूल त्रिकोण राशि सिंह, चंद्र की वृषभ, मंगल की मेष, बुध की कन्या, गुरु की धनु, शुक्र की तुला व शनि की मूल त्रिकोण राशि कुंभ है।  सूर्य की महादशा 6 वर्ष की होती है तो चंद्र की 10 वर्ष। मंगल की 7 वर्ष, बुध की 17 वर्ष, गुरु की 16 वर्ष | शुक्र की सर्वाधिक 20 वर्ष, शनि की 19 वर्ष | राहु की 18 वर्ष तथा केतु की 7 वर्ष की महादशा होती है। कोई भी महादशा प्रारंभ हो तो उसी की अंतर्दशा पहले चलती है। यह समझने के लिए गुरु की महादशा में गुरु का अंतर चलेगा। इसके बाद शनि, बुध, केतु, शुक्र, सूर्य, चंद्र, मंगल व राहु की अंतर्दशा चलेगी। महादशा में अंतर्दशा में प्रत्यंतर दशा भी उसी ग्रह की चलेगी जिसकी महादशा प्रथम चलती हो।  विंशोत्तरी  दशा क्रम में 9 ग्रहों का क्रम सदैव सूर्य, चन्द्र, मंगल, राहु, गुरु, शनि, बुध, केतु, शुक्र ही रहेगा | पहले के स...

ग्रहों से सम्बंधित रोगों के योग

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यदि मेष लग्न हो और अष्टम भाव में नीच के चंद्र के साथ शनि पड़ा हो तो व्यक्ति को जलोदर की बीमारी रहती है| उसकी पाचन शक्ति खराब रहती है तथा लीवर भी खराब हो जाता है | यदि अष्टम भाव में चंद्र अकेला अथवा अशुभ स्थिति में हो तो व्यक्ति शराबी ,व्यर्थ भ्रमण करने वाला होता है उसे हर्निया की बीमारी होती है| गैस भी हो सकती है और वायु विकार भी | यदि अष्टम भाव में केतु हो तो पेट में वायु का गोला घूमता रहता है, यदि केतु अशुभ स्थिति में हो तो व्यक्ति को अल्सर हो जाता है| यदि अष्टम भाव में नीच का मंगल हो और साथ में राहु और चंद्रमा कमजोर हो तो व्यक्ति की मृत्यु पानी में डूबने से होती है | यदि अष्टम भाव में शनि तथा लग्नेश हो तथा मंगल की शनि पर दृष्टि हो तो भी जलोदर की बीमारी होती है | अष्टम भाव में लग्नाधिपति मंगल, चंद्र और शुक्र हो तो उस व्यक्ति को हार्निया तथा सेक्स संबंधी बीमारी होती है| यदि अष्टम भाव में नीच का शनि हो अथवा अष्टम भाव के शनि पर क्रूर ग्रहों का प्रभाव हो तो भी पेशाब संबंधी बीमारी होती है | यदि तुला लग्न हो और दूसरे भाव में केतु हो आठवें राहु हो लग्नाधिपति शुक्र सूर्य के...

ग्रहों की “होरा” में करने योग्य कार्य

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ज्योतिष शास्त्र के प्रमुख सात ग्रहों के साथ वार निश्चित किए हुए हैं | वारों का एक निश्चित क्रम बना हुआ है | “होरा” एक समय सूचक शब्द है | 1 दिन व रात में कुल 24 होरा होती है इस प्रकार 1 घंटे की एक होरा होती है | सृष्टि के प्रारंभ में सबसे पहले सूर्य ही दिखाई दिया इसलिए सबसे प्रथम होरा सूर्य की ही मानी गई | प्रत्येक वार के सूर्योदय से 1 घंटे तक उसी ग्रह की होरा होती है | पहले संपूर्ण कार्यों की सिद्धि के लिए ज्योतिष शास्त्र में होरा मुहूर्त को पूर्ण फल दायक माना गया है | 7 ग्रह 7 वार की सात ही होरा है | जैसे कि पूर्व में बताया गया है कि संपूर्ण दिन-रात के 24 घंटों में 24 होरा होती है | अर्थात एक 1 घंटे की एक – एक होरा होती है  | प्रत्येक वर्ग के कार्य शुभाशुभ आधार पर निर्धारित किए गए हैं उन्ही के अनुसार कार्य करना शुभ फल प्राप्त होता है | प्रत्येक वार के लिए करने योग्य कार्य निम्न होते हैं | इन कार्यों को उस वार विशेष को ना कर सके तो इस वार विशेष की होरा में करने से सफलता और सुविधा रहती है | सूर्य की होरा  :- टेंडर देने, नौकरी व राज्य कार्य के चार्ज लेने देने के ल...

कुंडली में ह्रदय घात के योग और उपाय

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जब चतुर्थ भाव, चतुर्थ भाव का कारक, सूर्य अथवा लग्न क्रूर प्रभाव में हो तो व्यक्ति की हृदयघात (हार्ट अटैक) की समस्या होती है |यदि लग्न अथवा लग्नेश सूर्य से प्रभावित हो, चौथे भाव से सूर्य का संबंध हो, लग्न में सूर्य शत्रु राशि में हो, चौथे भाव का स्वामी सूर्य से पीड़ित हो तो व्यक्ति को हार्ट अटैक ही होता है| यदि सूर्य की स्थिति के साथ चंद्र व मंगल की स्थिति भी ठीक ना हो तो व्यक्ति की ब्लड प्रेशर एवं हार्ट अटैक दोनों से मृत्यु हो सकती है |देखें नीचे दी हुई उदाहरण कुंडलियाँ | कुंडली -1  में चतुर्थेश, चतुर्थ भाव कारक सूर्य एवं मंगल सभी लग्न को प्रभावित कर रहे हैं | लग्नेश मंगल की राशि में 12वें भाव में है| चतुर्थ भाव पर तथा लग्नेश शुक्र पर शनि एवं राहु की पूर्ण दृष्टि है अतः कोई भी स्थिति ऐसी नहीं है जो इस कुंडली के स्वामी को बचा सके| यह एक व्यक्ति विशेष की कुंडली है जिसको ब्लड प्रेशर भी था और हृदय रोग भी था| इसकी 40 वर्ष में ही मृत्यु हो गई| यहां हृदयेश सूर्य भी शत्रु राशि का है कुंडली -2   में भी लग्न में शत्रु राशि का सूर्य है सूर्य पर मंगल...

कुंडली में संतान योग

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जिस तरह विवाह के बिना किसी भी व्यक्ति का जीवन अधूरा माना जाता है उसी प्रकार संतान के बिना भी परिवार को अधूरा ही माना जाता है। बच्चों की किलकारियों से घर के आंगन में जीवन जीवंत हो उठता है। कुंडली में पंचम भाव के बलाबल से संतान के बारे में जाना जाता है| संतान का कारक ग्रह गुरु है अतः कुंडली में गुरु की स्थिति भी अच्छी होनी चाहिए तथा चंद्र से पंचम भाव के बलाबल को भी देख लेना चाहिए|कुंडली में नवम भाव और नवमेश की स्थिति एवं  बलाबल भी देख लेना चाहिए | संतान के योग के साथ साथ यह भी देख लेना चाहिए कि कुंडली में कहीं कोई संतान में रुकावट या संतान बाधा योग तो नहीं ? यदि एक और संतान योग भी हो, दूसरी ओर संतान बाधा योग भी, तो दोनों का तुलनात्मक विचार करके कुंडली में अन्य ग्रहों एवं गोचर में ग्रह स्थिति तथा महादशा अंतर्दशा का विचार करके ही निर्णय करना चाहिए| विशेष  :-  संतान के बारे में विचार करना हो तो पति पत्नी दोनों की कुंडलियां देखकर निर्णय करना चाहिए, केवल एक कुंडली देखकर नहीं| संतान के बारे में विचार प्रायः स्त्री कुंडली से अधिक ठीक बैठता है| फिर भी पति-पत्नी दोनों ...

कुंडली में वाहन, मकान व सम्पति योग – भाग -1

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कुंडली में चतुर्थ भाव से वाहन -कार, मोटरगाड़ी आदि तथा मकान – जमीन व  भू-संपत्ति के बारे में विचार किया जाता है | कुंडली के चतुर्थ भाव को सुख का स्थान माना जाता है और शुक्र को वाहन सुख का कारक | किसी व्यक्ति को वाहन सुख मिलेगा या नहीं यह जानने के लिए शुक्र और चौथे भाव के स्वामी ग्रह की स्थिति का अध्ययन किया जाता है | भाग्य एवं भाग्येश भी वाहन सुख के लिए महत्वपूर्ण है | यदि चतुर्थ भाव शुभ राशि में शुभ ग्रह  या अपने स्वामी से युत या दृष्ट हो, किसी पाप ग्रह से युत या दृष्ट ना हो, इसी प्रकार चतुर्थेश  भी शुभ प्रभाव में शुभ ग्रह से युत दुष्ट हो, किसी पाप प्रभाव में ना हो तो चतुर्थ भाव संबंधी शुभ फल की प्राप्ति हो सकती है यह प्रथम साधारण नियम है| अब आगे विचार करने के लिए इसे हम दो भागों में विभक्त करते हैं | प्रथम भाग – वाहन संबंधी, द्वितीय भाग -संपत्ति | ऐसा इसलिए किया गया है क्योंकि उपरोक्त सभी सुख के साधन चतुर्थ भाव से संबंधित है लेकिन दोनों भावों के कारक ग्रह अलग अलग है जैसे वाहन का कारक ग्रह शुक्र है उसी प्रकार मकान भूमि इत्यादि का कारक ग्रह मंगल है | वा...

कुंडली मिलान – मंगलिक दोष

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भारतीय संस्कृति के सोलह संस्कारों में से प्रमुख विवाह संस्कार, दो नए अपरिचित जीवन साथियों में सह – संबंध स्थापित करता है |  प्रत्येक माता-पिता की यही आकांक्षा रहती है कि उसकी कन्या को श्रेष्ठ और उत्तम घर मिले, जिससे उसका दांपत्य जीवन सुखद व समृद्ध रहे | भारतीय संस्कृति में सफल जीवन के लिए सुखद दांपत्य एक अनिवार्य शर्त है | इसलिए  हिंदू संस्कृति में कन्या के विवाह से पूर्व वर-वधू के ग्रह नक्षत्रों के विषय में ज्योतिषी से परामर्श लेते रहे हैं | सुयोग्य ज्योतिषी की परामर्श निश्चित रूप से जन्म कुंडली के आधार पर विघ्न कारक ग्रह दोषों के निवारण में सहायक सिद्ध होती है | सुखमय दांपत्य जीवन के लिए प्रमुखतः ये पांच बातें अनिवार्य है| 1. उत्तम स्वास्थ्य 2. आवश्यक भौतिक सुख सुविधाएं 3. रति सुख 4. सौभाग्य सुख  तथा समस्त आवश्यकताओं  की पूर्ति के लिए अच्छी क्रय शक्ति |ज्योतिष शास्त्र में आवश्यकताओं का विचार लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम तथा द्वादश भाव से किया जाता है| लग्न भाव से स्वास्थ्य, चतुर्थ से भौतिक सुख सुविधाओं की आवश्यक सामग्री, सप्तम से रति सुख ,अष्टम से ...