रत्न
कौन सा रत्न धारण करें
वैदिक ज्योतिष के अनुसार हर ग्रह का सम्बन्ध किसी न किसी रत्न से है, और हर रत्न का सम्बन्ध किसी न किसी ग्रह से ! जैसे सूर्य का सम्बन्ध माणिक्य रत्न से, चन्द्र का मोती से, बुध का पन्ने से, गुरु का पुखराज से शुक्र का हीरे से, शनि का नीलं से, राहू का गोमेद से और केतु का लह्सुनिये से! इस प्रकार अलग अलग ग्रहों का संबंध अलग अलग रत्नों से है |
वैदिक ज्योतिष के अनुसार हीरा रत्न, शुक्र गृह का प्रतिनिधित्व करता है ! यह एक अत्यंत प्रभावशाली रत्न होता है शुक्र रत्न हीरा धारण करने से पहले अनुभवी ज्योतिष की सलाह अवश्य लें अन्यथा अशुभ होने की स्थिति में यह फायदा देने की बजाय नुक्सान दे सकता है !
हीरा रत्न धारण करने की विधि :
यदि आप शुक्र देव का रत्न हीरा धारण करना चाहते है, तो 0.50 से 2 कैरेट तक के हीरे को चाँदीया सोने की अंगूठी में जड्वाकर किसी भी शुक्लपक्ष के शुक्रवार को सूर्य उदय के पश्चात अंगूठी को दूध, गंगा जल, शक्कर और शहद के घोल में डाल दे! उसके बाद पाच अगरबत्ती शुक्रदेव के नाम जलाये और प्रार्थना करे की हे शुक्र देव मै आपका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आपका प्रतिनिधि रत्न,हीरा धारण कर रहा हूँ , कृपया करके मुझे आशीर्वाद प्रदान करे! तत्पश्चात अंगूठी को निकाल कर " ॐ शं शुक्राय नम: "का 108 बारी जप करते हुए अंगूठी को अगरबत्ती के उपर से घुमाए फिर मंत्र के पश्चात् अंगूठी को लक्ष्मी जी के चरणों से लगाकर कनिष्टिका या मध्यमा ऊँगली में धारण करे! हीरा अपना प्रभाव 25 दिन में देना आरम्भ कर देता है, और लगभग 7 वर्ष तक पूर्ण प्रभाव देता है फिर निष्क्रिय हो जाता है! 7 वर्ष के पश्चात् पुनः नया हीरा धारण करे! अच्छे प्रभाव प्राप्त करने के लिए हीरे का रंग सफ़ेद और कोई काला दाग नहीं होना चाहिए !
2. मोती - ( चन्द्र )
वैदिक ज्योतिष के अनुसार मोती, चन्द्र गृह का प्रतिनिधित्व करता है! कुंडली में यदि चंद्र शुभ प्रभाव में हो तो मोती अवश्य धारण करना चाहिए ! चन्द्र मनुष्य के मन को दर्शाता है, और इसका प्रभाव पूर्णतया हमारी सोच पर पड़ता है! हमारे मन की स्थिरता को कायम रखने में मोती अत्यंत लाभ दायक सिद्ध होता है! इसके धारण करने से मात्री पक्ष से मधुर सम्बन्ध तथा लाभ प्राप्त होते है! मोती धारण करने से आत्मविश्वास में बढ़ोतरी भी होती है !
मोती धारण करने की की विधि -
यदि आप चंद्र देव का रत्न मोती धारण करना चाहते है, तो 5 से 8 कैरेट के मोती को चाँदी की अंगूठी में जड्वाकर किसी भी शुक्लपक्ष के प्रथम सोमवार को सूर्य उदय के पश्चात अंगूठी को दूध, गंगा जल, शक्कर और शहद के घोल में डाल दे! उसके बाद पाच अगरबत्ती चंद्रदेव के नाम जलाये और प्रार्थना करे की हे चन्द्र देव मै आपका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आपका प्रतिनिधि रत्न, मोती धारण कर रहा हूँ , कृपया करके मुझे आशीर्वाद प्रदान करे! तत्पश्चात अंगूठी को निकाल कर ॐ सों सोमाय नम: का 108 बारी जप करते हुए अंगूठी को अगरबत्ती के उपर से घुमाए फिर मंत्र के पश्चात् अंगूठी को शिवजी के चरणों से लगाकर कनिष्टिका ऊँगली में धारण करे! मोती अपना प्रभाव 4 दिन में देना आरम्भ कर देता है, और लगभग 2 वर्ष तक पूर्ण प्रभाव देता है फिर निष्क्रिय हो जाता है! 2 वर्ष के पश्चात् पुनः नया मोती धारण करे! अच्छे प्रभाव प्राप्त करने के लिए साऊथ सी का 5 से 8 कैरेट का मोती धारण करे! मोती का रंग सफ़ेद और कोई काला दाग नहीं होना चाहिए !
3 माणिक्य रत्न - ( सूर्य )
वैदिक ज्योतिष के अनुसार माणिक्य रत्न, सूर्य का प्रतिनिधित्व करता है! इस रत्न पर सूर्य का स्वामित्व है! यह लाल या हलके गुलाबी रंग का होता है! यह एक मुल्वान रत्न होता है, यदि जातक की कुंडली में सूर्य शुभ प्रभाव में होता है तो माणिक्य रत्न धारण करना चाहिए, इसके धारण करने से धारण करता को अच्छे स्वास्थ्य के साथ साथ पद-प्रतिष्ठा, अधिकारीयों से लाभ प्राप्त होता है! शत्रु से सुरक्षा, ऋण मुक्ति, एवं आत्म स्वतंत्रता प्रदान होती है! माणिक्य एक भहुमुल्य रत्न है और यह उच्च कोटि का मान-सम्मान एवम पद की प्राप्ति करवाता है! सत्ता और राजनीती से जुड़े लोगो को माणिक्य अवश्य धारण करना चाहिए क्योकि यह रत्न सत्ता धारियों को एक उचे पद तक पहुचाने में बहुत सहायता कर सकता है!
माणिक्य धारण करने की विधि
यदि आप माणिक्य धारण करना चाहते है तो 5 से 7 कैरेट का लाल या हलके गुलाबी रंग का पारदर्शी माणिक्य ताम्बे की या स्वर्ण अंगूठी में जड्वाकर किसी भी शुक्लपक्ष के प्रथम रविवार के दिन सूर्य उदय के पश्चात् अपने दाये हाथ की अनामिका में धारण करे! अंगूठी के शुधिकरण और प्राण प्रतिष्ठा करने के लिए सबसे पहले अंगूठी को दूध, गंगाजल, शहद, और शक्कर के घोल में डुबो कर रखे, फिर पांच अगरबत्ती सूर्य देव के नाम जलाए और प्रार्थना करे की हे सूर्य देव मै आपका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आपका प्रतिनिधि रत्न धारण कर रहा हूँ! मुझे आशीर्वाद प्रदान करे ! तत्पश्चात अंगूठी को जल से निकालकर " ॐ घ्रणिः सूर्याय नम: " मन्त्र का जाप 108 बारी करते हुए अंगूठी को अगरबती के ऊपर से घुमाये और 108 बार मंत्र जाप के बाद अंगूठी को विष्णु या सूर्य देव के चरणों से स्पर्श करवा कर अनामिका में धारण करे! माणिक्य धारण तिथि से बारह दिन में प्रभाव देना प्रारंभ करता है और लगभग चार वर्ष तक पूर्ण प्रभाव देता है फिर निषक्रिय हो जाता है! अच्छे प्रभाव के लिए बन्कोक का पारदर्शी माणिक्य 5 से 7 कैरेट वजन में धारण करे! सस्ते और भद्दे रत्नों को धारण करने से लाभ के स्थान पर हानी हो सकती है |
4 . पुखराज रत्न
वैदिक ज्योतिष के अनुसार पुखराज, ब्रहस्पति गृह का प्रतिनिधित्व करता है! यह पीले रंग का एक बहुत मूल्यवान रत्न है, जितना यह मूल्यवान है उतनी ही इस रत्न की कार्य क्षमता प्रचलित है! इस रत्न को धारण करने से ईश्वरीय कृपया प्राप्त होती है! मेरे व्यक्तिगत अनुभव में, पुखराज धारण करने से विशेषकर आर्थिक परेशानिया खत्म हो जाती है, और धारण करता को अलग अलग रास्तो से आर्थिक लाभ मिलना प्रारम्भ हो जाता है, इसलिए मेरा यह मानना है की आर्थिक समस्याओ से निजाद प्राप्त करने और जीवन में तरक्की प्राप्त करने के लिए जातक को अवश्य अपनी कुंडली का निरक्षण करवाकर पुखराज धारण करना चाहिए! पुखराज धारण करने से अच्छा स्वास्थ्य, आर्थिक लाभ, लम्बी उम्र और मान प्रतिष्ठा प्राप्त होती है!
पुखराज धारण करने की विधि
यदि आप ब्रहस्पति देव के रत्न, पुखराज को धारण करना चाहते है, तो 3 से 5 कैरेट के पुखराज को स्वर्ण या चाँदी की अंगूठी में जड्वाकर किसी भी शुक्ल पक्ष के ब्रहस्पति वार को सूर्य उदय होने के पश्चात् इसकी प्राण प्रतिष्ठा करवाकर धारण करें! इसके लिए सबसे पहले अंगुठी को दूध,,,गंगा जल शहद, और शक्कर के घोल में डाल दे, फिर पांच अगरबत्ती ब्रहस्पति देव के नाम जलाए औ प्रार्थना करे कि हे ब्रहस्पति देव मै आपका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आपका प्रतिनिधि रत्न पुखराज धारण कर रहा हूँ कृपया करके मुझे अपना आशीर्वाद प्रदान करे ! अंगूठी को निकालकर 108 बारी अगरबत्ती के ऊपर से घुमाते हुए " ॐ ब्रह्म ब्रह्स्पतिये नम: " का जाप करे तत्पश्चात अंगूठी विष्णु जी के चरणों से स्पर्श कराकर तर्जनी में धारण करे! ब्रहस्पति के अच्छे प्रभावों को प्राप्त करने के लिए उच्च कोटि का सिलोनी पुखराज ही धारण करे, पुखराज धारण करने के 30 दिनों में प्रभाव देना आरम्भ कर देता है और लगभग 4 वर्ष तक पूर्ण प्रभाव देता है और फिर निष्क्रिय हो जाता है ! निष्क्रिय होने के बाद आप पुन: नया पुखराज धारण कर सकते है ! अच्छे प्रभाव के लिए पुखराज का रंग हल्का पीला और दाग रहित होना चाहिए , पुखराज में कोई दोष नहीं होना चाहिए अन्यथा शुभ प्रभाओं में कमी आ सकती है !
5.पन्ना रत्न -
वैदिक ज्योतिष के अनुसार पन्ना, बुद्ध गृह का प्रतिनिधित्व करता है ! उच्च कोटि का पन्ना जाम्बिया तथा स्कॉट्लैंड की खानों से निकला जाता है ! इसका रंग हलके तोतिये से लेकर गाड़े हरे रंग तक हो सकता है !विधार्थियों को अपनी कुंडली का निरिक्षण किसी अच्छे ज्योतिषी से करवाकर पन्ना अवश्य धारण करना चाहिए क्योकि हमारे शैक्षिक जीवन में बुध ग्रह की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है ! अच्छी शिक्षा बुध की कार्यकुशलता पर निर्भर है! यदि आप एक व्यापारी है और अपने व्यापार में उन्नति चाहते है तो आप पन्ना धारण कर सकते है! हिसाब किताब के कामो से जुड़े जातको को भी पन्ना अवश्य धारण करना चाहिए क्योकि एक अच्छे गणितज्ञ की योग्यता बुध के बल पर निर्भर करती है!
पन्ना धारण करने की विधि
यदि आप बुध देव के रत्न, पन्ने को धारण करना चाहते है, तो 3 से 5 कैरेट के पन्ने को स्वर्ण या चाँदी की अंगूठी में जड्वाकर किसी भी शुक्ल पक्ष के बुधवार को सूर्य उदय होने के पश्चात् इसकी प्राण प्रतिष्ठा करे! इसके लिए सबसे पहले अंगुठी को दूध,,,गंगा जल शहद, और शक्कर के घोल में डाल दे, फिर पांच अगरबत्ती बुध देव के नाम जलाए औ प्रार्थना करे कि हे बुध देव मै आपका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आपका प्रतिनिधि रत्न पन्ना धारण कर रहा हूँ कृपया करके मुझे अपना आशीर्वाद प्रदान करे ! अंगूठी को निकालकर 108 बारी अगरबत्ती के ऊपर से घुमाते हुए ॐ बू बुधाय नम: का जाप करे तत्पश्चात अंगूठी विष्णु जी के चरणों से स्पर्श कराकर कनिष्टिका में धारण करे! बुध के अच्छे प्रभावों को प्राप्त करने के लिए उच्च कोटि का जम्बियन पन्ना ही धारण करे, पन्ना धारण करने के 30 दिनों में प्रभाव देना आरम्भ कर देता है और लगभग 3 वर्ष तक पूर्ण प्रभाव देता है और फिर निष्क्रिय हो जाता है ! निष्क्रिय होने के बाद पुन: नया पन्ना धारण करे ! पन्ने का रंग हरा और दाग रहित होना चाहिए , पन्ने में कोई दोष नहीं होना चाहिए अन्यथा शुभ प्रभाओं में कमी आ सकती है !
6. मूंगा रत्न
वैदिक ज्योतिष के अनुसार मुंगा रत्न मंगल ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है! बेहतरीन मुंगा जापान और इटली के समुन्द्रो में पाया जाता है! यदि जन्म कुंडली में मंगल अच्छे प्रभाव दे रहा हो तो मुंगा अवश्य धारण करना चाहिए ! कुंडली में मंगल कमज़ोर होने की स्थिति में मुंगा धारण करने से उसे बल दिया जा सकता है! मुंगा धारण करने से हमारे पराक्रम में वृद्धि होती है आलस्य में कमी आती है! मुंगा कुंडली में स्थित मांगलिक योग की अशुभता में भी कमी लता है
मुंगा धारण करने की विधि
यदि आप मंगल देव के रत्न, मुंगे को धारण करना चाहते है, तो 5 से 8 कैरेट के मुंगे को स्वर्ण या ताम्बे की अंगूठी में जड्वाकर किसी भी शुक्ल पक्ष के किसी भी मंगलवार को सूर्य उदय होने के पश्चात् इसकी प्राण प्रतिष्ठा करे! इसके लिए सबसे पहले अंगुठी को दूध,,,गंगा जल शहद, और शक्कर के घोल में डाल दे, फिर पांच अगरबत्ती मंगल देव के नाम जलाए और प्रार्थना करे कि हे मंगल देव मै आपका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आपका प्रतिनिधि रत्न मुंगा धारण कर रहा हूँ कृपया करके मुझे अपना आशीर्वाद प्रदान करे ! अंगूठी को निकालकर 108 बारी अगरबत्ती के ऊपर से घुमाते हुए ॐ अं अंगारकाय नम: ११ बारी का जाप करे तत्पश्चात अंगूठी हनुमान जी के चरणों से स्पर्श कराकर अनामिका में धारण करे! मंगल के अच्छे प्रभावों को प्राप्त करने के लिए उच्च कोटि का जापानी या इटालियन मुंगा ही धारण करे |
7. नीलम रत्न - ( शनि )
नीलम रत्न शनि गृह का प्रतिनिधि रत्न है, यह एक अत्तयंत प्रभावशाली रत्न होता है ! कहते है की यदि नीलम किसी भी व्यक्ति को रास आ जाए तो वारे न्यारे कर देता है , लेकिन आखिर इस तथ्य की पीछे क्या सिद्धांत है ? क्या वाक्य में नीलम धारण करने से वारे न्यारे हो सकते है और यदि हाँ तो कैसे ? दरअसल नीलम शनि गृह का रत्न है इसलिए शनि गृह सम्बंधित सभी विशेषताए इसमें विद्यमान होती है, वैदिक ज्योतिष के अनुसार शनि का सम्बन्ध श्रम और मेहनत से होता है, ऐसा कहना बिलकुल गलत होगा की शनि किसी जातक को बैठे बिठाए शोहरत दे देता है बल्कि जो जातक आलसी होता है उसे शनि का रत्न नीलम कभी भी रास नहीं आता यह रत्न तो मेहनती जातको के लिए है जो अपनी मेहनत और लगन से कामयाबी हासिल करते है! यदि आप आलसी है तो आपका नीलम धारण करना व्यर्थ होगा क्योकि शनि के द्वारा कामयाबी तभी मिलती है जब जातक अत्यंत मेहनती होता है! यदि आप मेहनत करने से नहीं कतराते तो आप नीलम धारण कर सकते है और शनि देव का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते है! लेकिन नीलम धारण करने से पहले कुंडली का निरिक्षण अत्यंत आवश्यक है क्योकि मेरे अनुभव से केवल 5 से 10 प्रतिशत जातको को ही नीलम रत्न रास आता है! मेरे अनुभव से यह कहना भी ठीक नहीं होगा की नीलम धारण करने के कुछ क्षणों में शुभ या अशुभ प्रभाव दे देता है क्योकि शनि एक अत्यंत धीमा गृह है यह लगभग 2.5 वर्ष तक एक ही राशि में भ्रमण करता है और 12 राशियों का चक्कर पूरा करने में इसे लगभग 30 वर्ष लगते है और किसी जातक के पूर्ण जीवन में अत्यधिक केवल 3 बार सभी राशियों का भ्रमण करता है जो की सभी ग्रहों की अपेक्षा सबसे कम है, अब आप स्वयं ही बताये की इतनी धीमी गति से चलने वाला गृह , कुछ क्षणों में कैसे प्रभाव दे सकता है! बेहतरीन नीलम जम्मू और कश्मीर की खानों में पाया जाता है जो आज के दौर में लगभग मिलना नामुमकिन है और यदि मिल भी जाये तो उसकी कीमत अदा करना हर किसी के बस की बात नहीं है! श्री लंका का नीलम भी बेहतरीन होता है और यह आसानी से उपलब्ध हो जाता है लेकिन यह भी एक महंगा रत्न होता है! इसकी कीमत 1000 रु कैरेट से लेकर 100000 रु कैरेट तक हो सकती है! अच्छे प्रभाव के लिए कम से कम 3000 रु कैरेट तक का नीलम धारण करना चाहिए !
नीलम धारण करने की विधि
यदि आप नीलम धारण करना चाहते है तो 3 से 6 कैरेट के नीलम रत्न को स्वर्ण या पाच धातु की अंगूठी में लगवाये! और किसी शुक्ल पक्ष के प्रथम शनि वार को सूर्य उदय के पश्चात अंगूठी की प्राण प्रतिष्ठा करे! इसके लिए अंगूठी को सबसे पहले गंगा जल, दूध, केसर और शहद के घोल में 15 से 20 मिनट तक दाल के रखे, फिर नहाने के पश्चात किसी भी मंदिर में शनि देव के नाम 5 अगरबत्ती जलाये, अब अंगूठी को घोल से निलाल कर गंगा जल से धो ले, अंगूठी को धोने के पश्चात उसे 11 बारी ॐ शं शानिश्चार्ये नम: का जाप करते हुए अगरबत्ती के उपर से घुमाये, तत्पश्चात अंगूठी को शिव के चरणों में रख दे और प्रार्थना करे हे शनि देव में आपका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आपका प्रतिनिधि रत्न धारण कर रहा हूँ किरपा करके मुझे अपना आशीर्वाद प्रदान करे! फिर अंगूठी को शिव जी के चरणों के स्पर्श करे और मध्यमा ऊँगली में धारण करे!
लेखक - ज्योतिर्विद्ः घनश्यामलाल स्वर्णकार
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