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पुष्य नक्षत्र – एक सहज चिंतन

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  पुष्य नक्षत्र का स्वामी ग्रह शनि और देवता बृहस्पति है | यह नक्षत्रों में राजा माना जाता है | इसमें समस्त कार्यों की सिद्धि होती है |पुष्य – चर-स्थिर , शांति, उत्सव सम्बन्धी कार्य, विवाह को छोड़कर शुभ होते हैं |पुष्य नक्षत्र में तारों की संख्या 3 होती है | गुरूवार को पुष्य नक्षत्र होने से समस्त कार्यों में  सिद्धिदायक , अमृत सिद्धि योग होता है |ग्रहों की स्थापना पुष्य नक्षत्र में आना  शुभ रहता है | आकाश में कांति मंडल को 27 तुल्य भागों में विभाजित कर प्रत्येक खंड में आने वाले तारों के समूह को एक नक्षत्र की संज्ञा दी गयी है |प्रत्येक नक्षत्र समूह के किसी प्रमुख तारा को उस नक्षत्र का केंद्र मान कर वेधादि कार्य किये जाते हैं , जिसे योग तारा कहा जाता है | पुष्य नक्षत्र पाप ग्रह से दृष्ट या युक्त होने पर भी पुष्य नक्षत्र बलवान होता है जैसे समस्त जीवों में सिंह बलवान होता है , उसी प्रकार समस्त नक्षत्रों में यह बली  होता है |इसलिए गोचर से इस नक्षत्र में चंद्रमा के विपरीत होने पर भी कार्यों की सिद्धि बलवत्ता के कारण होती है | पुष्य नक्षत्र  नक...