ज्योतिष
Article # 1 व्यक्ति को धनवान बनाते है ऐसे योग -
धनवान व्यक्ति की इज्जत समाज में बहुत होती है और इस प्रकार के व्यक्ति की बात भी सभी सुनते है। वैसे तो व्यक्ति का असली धन उसकी बुद्धि और विवेक भी है। शास्त्र इस बात को इस तरह कहते है कि अगर व्यक्ति को सरस्वती देवी और लक्ष्मी देवी, का साथ, एक साथ मिल जाए तो व्यक्ति खुद को भाग्यशाली समझे। धनवान होने के लिए भाग्य का साथ बहुत जरूरी होता है।बिना भाग्य लक्ष्मी प्राप्त नही हो सकती | धन की प्राप्ति के लिए कुंडली में कुछ योग बताये गये हैं। यह योग व्यक्ति की कुंडली में मौजूद होने से, थोड़े से ही प्रयास से धन प्राप्त होने लगता है।
तो आइये जानते हैं उन कुंडली योगों के बारें में जो व्यक्ति को धनवान बना देते हैं-
1. कुंडली में धन का स्थान दूसरा घर व ग्यारवाँ घर माना जाता है। अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में इन दोनों घरों के अन्दर मंगल और सूर्य एक साथ विराजमान हों तो वह व्यक्ति एक सफल व्यवसायी बनता है। इस योग वाले व्यक्ति के पास धन प्रचुर मात्रा में रहता है।
2. अगर कुंडली में दसमं स्थान पर ब्रहस्पति और मंगल एक साथ बैठे हों या चन्द्रमा व मंगल एक साथ बैठे हों तो यह गज केसरी और लक्ष्मी नारायण योग बनाते हैं। इन दोनों योगों वालों जातकों के पास धन, बहुत हल्के व कम प्रयास से भी आ जाता है। इन जातकों की आय अधिक होती है और व्यय कम होता है। इन योग से प्रभावित व्यक्ति पर माँ लक्ष्मी की कृपा दृष्टि सदैव बनी रहती है।
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3.अगर किसी जातक का सिंह लग्न में दसमं स्थान पर सूर्य और बुध हों तो यह एक बुधादित्य योग बन जाता है। शास्त्रों के अनुसार यह योग व्यक्ति को धनवान बना देता है। जन्म कुंडली में दसमं स्थान में सूर्य और बुध एक साथ युक्त हो तो यह योग बनता है। ऐसे योग वाला व्यक्ति अतिबुद्धिमान एवं चतुर होता है। इस प्रकार के जातक बहुत ही कम समय में चर्चित हो जाते हैं। इनको मान-सम्मान भी बहुत जल्दी प्राप्त हो जाता है।
4.मीन लग्न में दसमं स्थान स्थान पर अगर ब्रहस्पति और चंद्रमा भी एक साथ विराजमान होते हैं तो कुंडली में केंद्र त्रिकोण योग बनता है। यह योग भी व्यक्ति को धनवान बनाता है। ऐसे व्यक्ति का जीवन राजा-महाराजों की तरह होता है। नाम, काम, मान, सम्मान और प्रॉपर्टी इन जातकों के पास प्रचुर मात्रा में होती है।
5.पंचम भाव में अगर मेष या वृश्चिक का मंगल हो और लाभ स्थान में शुक्र स्थित हो तो व्यक्ति को धन संबंधित कोई भी परेशानी नहीं होती है। इसी तरह पाँचवें घर में सिंह के सूर्य हो और लाभ स्थान में शनि, चंद्र-शुक्र से युक्त हो तो इस योग का जातक धनी होता है।
6.दूसरे भाव में चंद्रमा के स्थित होने पर धनवान होने की प्रबल सम्भावना होती है। इस प्रकार के जातकों को जीवन में धन संबंधित समस्या नहीं रहती है।
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Article # 2
कुंडली में संतान योग
जिस तरह विवाह के बिना किसी भी व्यक्ति का जीवन अधूरा माना जाता है उसी प्रकार संतान के बिना भी परिवार को अधूरा ही माना जाता है। बच्चों की किलकारियों से घर के आंगन में जीवन जीवंत हो उठता है।ज्योतिषाचार्यों के अनुसार जातक की जन्मकुंडली में ग्रहों की दशा से यह पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि जातक की कुंडली में संतान का योग है कि नहीं। तो आइये जानते हैं ऐसे कौनसे योग हैं आपकी कुंडली में जो बताते हैं कि आपको जीवन में संतान का सुख प्राप्त होगा या नहीं।
ग्रहों की कौनसी दशाएं बनाती हैं प्रबल संतान योग
ज्योतिर्विद् घनश्यामलाल स्वर्णकार के अनुसार जब पंचम पर शुभ ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो तो संतान योग बनने की संभावनाएं प्रबल होती हैं। जब जातक की कुंडली में शुक्र अच्छा होता है तो वह गर्भ में शिशु कन्सीव होने के लिये एक शुभ योग बनाता है। अब गर्भ में शिशु स्वस्थ रहे और स्वस्थ ही वह जन्म ले इसके लिये बृहस्पति का शुभ होना मंगलकारी माना जाता है। लग्नेश एवं पंचमेश का संबंध भी संतानोत्पत्ति के लिये अच्छा योग बनाता है। बृहस्पति का लग्न में या भाग्य में या एकादश में बैठना और महादशा में चलना भी संतान उत्पति का प्रबल योग बनाता है। जब शुक्र पंचम को देख रहा हो या वह पंचमेश में हो तो इन परिस्थितियों में संतान पैदा होने की तमाम संभावनाएं जन्म लेती हैं। इस प्रकार यदि कोई जातक संतान को लेकर चिंतित है तो उसे स्वास्थ्य जांच के साथ-साथ अपनी कुंडली का अध्ययन विद्वान ज्योतिषाचार्यों से अवश्य करवाना चाहिये और जानना चाहिये कि कहीं ग्रहों की दशा प्रतिकूल तो नहीं। कहीं संतान उत्पति में देरी का कारण ग्रहों की यह प्रतिकूल दशा तो नहीं।
ग्रहों की कौनसी दशा से होता है संतान उत्पति में विघ्न
ग्रहों के शुभ योग से संतान उत्पति की संभावनाएं तो पैदा होती हैं लेकिन यदि ग्रहों के इस शुभ योग पर पाप ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो तो ऐसी परिस्थितियों में संतान उत्पति में में विलंब हो सकता है।
= उदाहरण के तौर पर यदि पंचम स्थान पर राहू की दृष्टि पड़ रही हो तो ऐसे में संतान को हानि पहुंच सकती है। यहां तक बच्चे के लिये प्राणघातक योग भी बन जाता है अन्यथा बाधा तो पहुंचती ही है। संतान उत्पति का कारक घर पंचम है यदि इस पर पाप ग्रहों की दृष्टि पड़ती है तो इससे नकारात्मक योग बनता है। इससे संतान होने में बाधा होती है। कभी कभी संतान मृत पैदा होती है या फिर पैदा होने के कुछ समय बाद उसकी मौत हो जाती है तो उसका कारण भी ज्योतिषशास्त्र के अनुसार यही पाप ग्रह होते हैं।
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Article # 3
कुंडली का यह योग व्यक्ति को बना देता है राजा
कुंडली में नौवें और दसवें स्थान का बड़ा महत्त्व होता है।जन्म कुंडली में नौवां स्थान भाग्य का और दसवां कर्म का स्थान होता है। कोई भी व्यक्ति इन दोनों घरों की वजह से ही सबसे ज्यादा सुख और समृधि प्राप्त करता है। कर्म से ही भाग्य का निर्माण होता है और अच्छा भाग्य, अच्छे कार्य व्यक्ति से करवाता है।अगर जन्म कुंडली के नौवें या दसवें घर में सही ग्रह मौजूद रहते हैं तो उन परिस्थितियों में राजयोग का निर्माण होता है। राज योग एक ऐसा योग होता है जो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष राजा के समान सुख प्रदान करता है। इस योग को प्राप्त करने वाला व्यक्ति सभी प्रकार की सुख-सुविधाओं को प्राप्त करने वाला होता है।
--> ज्योतिष की दुनिया में जिन व्यक्तियों की कुण्डली में राजयोग निर्मित होता है, वे उच्च स्तरीय राजनेता, मंत्री, किसी राजनीतिक दल के प्रमुखया कला और व्यवसाय में खूब मान-सम्मान प्राप्त करते हैं।राजयोग का आंकलन करने के लिए जन्म कुंडली में लग्न को आधार बनाया जाता है। कुंडली की लग्न में सही ग्रह मौजूद होते हैं तो राजयोग का निर्माण होता है।
--> जिस व्यक्ति की कुंडली में राजयोग रहता है उस व्यक्ति को हर प्रकार की सुख-सुविधा और लाभ भी प्राप्त होते हैं। इस लेख के माघ्यम से आइए जानें कि कुण्डली में राजयोग का निर्माण कैसे होता है-
1.मेष लग्न- मेष लग्न में मंगल और ब्रहस्पति अगर कुंडली के नौवें या दसवें भाव में विराजमान होते हैं तो यह राजयोग कारक बन जाता है।
2.वृष लग्न- वृष लग्न में शुक्र और शनि अगर नौवें या दसवें स्थान पर विराजमान होते हैं तो यह राजयोग का निर्माण कर देते हैं।इस लग्न में शनि राजयोग के लिए अहम कारक बताया जाता है।
3.मिथुन लग्न- मिथुन लग्न में अगर बुध या शनि कुंडली के नौवें या दसवें घर में एक साथ आ जाते हैं तो ऐसी कुंडली वाले जातक का जीवन राजाओं जैसा बन जाता है।
4.कर्क लग्न- कर्क लग्न में अगर चंद्रमा और ब्रहस्पति भाग्य या कर्म के स्थान पर मौजूद होते हैं तो यह केंद्र त्रिकोंण राज योग बना देते हैं। इस लग्न वालों के लिए ब्रहस्पति और चन्द्रमा बेहद शुभ ग्रह भी बताये जाते हैं।
5.सिंह लग्न- सिंह लग्न के जातकों की कुंडली में अगर सूर्य और मंगल दसमं या भाग्य स्थान में बैठ जाते हैं तो जातक के जीवन में राज योग कारक का निर्माण हो जाता है।
6.कन्या लग्न- कन्या लग्न में बुध और शुक्र अगर भाग्य स्थान या दसमं भाव में एक साथ आ जाते हैं तो जीवन राजाओं जैसा हो जाता है।
7.तुला लग्न- तुला लग्न वालों का भी शुक्र या बुध अगर कुंडली के नौवें या दसवें स्थान पर एक साथ विराजमान हो जाता है तो इस ग्रहों का शुभ असर जातक को राजयोग के रूप में प्राप्त होने लगता है।
8.वृश्चिक लग्न- वृश्चिक लग्न में सूर्य और मंगल, भाग्य स्थान या कर्म स्थान (नौवें या दसवें) भाव में एक साथ आ जाते हैं तो ऐसी कुंडली वाले का जीवन राजाओं जैसा हो जाता है। यहाँ एक बात और ध्यान देने वाली है कि अगर मंगल और चंद्रमा भी भाग्य या कर्म स्थान पर आ जायें तो यह शुभ रहता है।
9.धनु लग्न- धनु लग्न के जातकों की कुंडली में राजयोग के कारक, ब्रहस्पति और सूर्य माने जाते हैं। यह दोनों ग्रह अगरनौवें या दसवें घर में एक साथ बैठ जायें तो यह राजयोग कारक बन जाता है।
10.मकर लग्न- मकर लग्न वाली की कुंडली में अगर शनि और बुध की युति, भाग्य या कर्म स्थान पर मौजूद होती है तो राजयोग बन जाता है।
11.कुंभ लग्न- कुंभ लग्न वालों का अगर शुक्र और शनि नौवें या दसवें स्थान पर एक साथ आ जाते हैं तो जीवन राजाओं जैसा हो जाता है।
12.मीन लग्न- मीन लग्न वालों का अगर ब्रहस्पति और मंगल जन्म कुंडली के नवें या दसमं स्थान पर एक साथ विराजमान हो जाते हैं तो यह राज योग बना देते हैं।
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Article # 4
कुंडली में विवाह योग
विवाह यानि गृहस्थ जीवन की एक नई शुरुआत। विवाहोपरांत व्यक्ति सिर्फ व्यक्ति न रहकर परिवार हो जाता है एवं सामाजिक रुप से जिम्मेदार भी। समाज में उसकी प्रतिष्ठा भी बढ़ जाती है। यह जीवन का एक ऐसा मोड़ होता है जिसके अभाव में व्यक्ति अधूरा रहता है। लेकिन विवाह हर व्यक्ति की किस्मत में नहीं होता। अलग-अलग समाजों में विवाह को लेकर अलग-अलग तरह की प्रथाएं और रिवाज हैं। भारतीय समाज में पारंपरिक विवाह बड़े पैमाने पर होते हैं लेकिन वर्तमान समय में प्रेम विवाह का चलन भी बढ़ा है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जातक की कुंडली में मौजूद ग्रहों की दशा से व्यक्ति के विवाह को लेकर पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। सिर्फ पूर्वानुमान ही नहीं बल्कि यह भी कि व्यक्ति का वैवाहिक जीवन सफल रहेगा या नहीं यह भी। तो आइये जानते हैं कि ऐसे कौनसे ग्रह हैं जो किसी जातक की कुंडली विवाह के योग को दर्शाते हैं।
कौनसे ग्रह हैं कुंडली में विवाह योग के कारक
कुंडली में विवाह योग के कारक ग्रहों के बारे में ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि जब बृहस्पति पंचम पर दृष्टि डालता है तो यह जातक की कुंडली में विवाह का एक प्रबल योग बनाता है। बृहस्पति का भाग्य स्थान या फिर लग्न में बैठना और महादशा में बृहस्पति होना भी विवाह का कारक है। यदि वर्ष कुंडली में बृहस्पति पंचमेश होकर एकादश स्थान में बैठता है तब उस साल जातक का विवाह होने की बहुत ज्यादा संभावनाएं बनती हैं। विवाह के कारक ग्रहों में बृहस्पति के साथ शुक्र, चंद्रमा एवं बुद्ध भी योगकारी माने जाते हैं। जब इन ग्रहों की दृष्टि भी पंचम पर पड़ रही हो तो वह समय भी विवाह की परिस्थितियां बनाता है। इतना ही नहीं यदि पंचमेश या सप्तमेश का एक साथ दशाओं में चलना भी विवाह के लिये सहायक होता है।
कौनसे ग्रह हैं कुंडली में विवाह योग के बाधक
बृहस्पति की दृष्टि पंचम पर पड़ने से उस समय विवाह के योग बन जाते हैं लेकिन यदि उसी समय एकादश स्थान में राहू बैठा हो वह नकारात्मक योग भी बनाता है जिससे बने बनाए रिश्ते भी बिगड़ जाते हैं और बनता हुआ काम अटक जाता है। अक्सर सुनने में आता है कि सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन एन मंजिल के समीप पंहुच कर मामला लटक गया या कहें बात सिरे नहीं चढ़ी। इसका सीधा सा कारण है आपके विवाह के योगकारी ग्रहों पर पाप ग्रहों की दृष्टि। पंचम स्थान पर यदि अशुभ ग्रहों यानि कि शनि, राहू और केतू की दृष्टि पड़ती है तो यह विवाह में बाधक योग बना देती है।
कुंडली में विवाह योग बनाने के उपाय
लेख के उपरोक्त वर्णन में आपने विवाह के कारक ग्रहों की दशा और विवाह में बाधक ग्रहों की दशा के बारे में जाना। ऐसे में जातक के सामने यह सवाल उठ सकता है कि यदि उसकी कुंडली में ग्रहों की दशा अनुकूल नहीं है तो उसे क्या करना चाहिये। इसके लिये जातक कुछ सामान्य उपाय कर सकते हैं।
= मसलन यदि देवताओं का गुरु ग्रह बृहस्पति की दशा आपकी कुंडली के अनुसार कमजोर चल रही है और आपके विवाह में अड़चने आ रही हैं तो आपको बृहस्पति को प्रसन्न करना चाहिये। इसके लिये हर गुरुवार इनकी पूजा करें और पीले रंग की वस्तुएं इन्हें अर्पित करें।
=गुरुवार के दिन पीले रंग के परिधान धारण करें तो बहुत अच्छा रहेगा। कमजोर ग्रहों को रत्न पहनने से भी काफी शक्ति मिलती है। बृहस्पति को शक्तिशाली करने के लिये आप पुखराज, जरकन या हीरे की अंगूठी पहन सकते हैं।
=भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करना भी काफी लाभकारी होता है। अगर और भी बेहतर और त्वरित परिणाम चाहते हैं तो ज्योतिषाचार्य को अपनी जन्म कुंडली दिखाएं और विवाह में बाधक ग्रह या दोष का पता लगाकर उसका निवारण करें।
Article # 5
कुंडली में सरकारी नौकरी के योग
व्यक्ति के जीवन में हो रहीं, छोटी या बड़ी हर प्रकार की घटनाओं के लिए कुंडली के ग्रहों का बहुत बड़ा हाथ होता है। कुंडली में जिस प्रकार का ग्रह शक्तिशाली होता है उसी प्रकार के परिणाम भी व्यक्ति को प्राप्त होते हैं। कई बार ऐसा होता है कि अथक मेहनत और परिश्रम के बाद भी व्यक्ति को सरकारी नौकरी प्राप्ति में सफलता नहीं मिल रही होती है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सरकारी नौकरी का निर्धारण व्यक्ति की योग्यता, शिक्षा, अनुभव के साथ-साथ उसकी जन्मकुंडली में बैठे ग्रह योगों के कारण भी होता है। आइये जानते हैं कि वह कौन-से ग्रह योग होते हैं जो सरकारी नौकरी प्राप्ति में मदद करते हैं।
सरकारी नौकरी के लिए कुंडली में निम्न योगों का होना शुभ माना जाता है-
1.कुंडली में दशम स्थान को (दसवां स्थान) को कार्यक्षेत्र के लिए जाना जाता है। सरकारी नौकरी के योग को देखने के लिए इसी घर का आंकलन किया जाता है। दशम स्थान में अगर सूर्य, मंगल या ब्रहस्पति की दृष्टि पड़ रही होती है तो सरकारी नौकरी का प्रबल योग बन जाता है। कभी-कभी यह भी देखने में आता है कि जातक की कुंडली में दशम में तो यह ग्रह होते हैं लेकिन फिर भी जातक को संघर्ष करना पड़ रहा होता है तो ऐसे में अगर सूर्य, मंगल या ब्रहस्पति पर किसी पाप ग्रह (अशुभ ग्रह) की दृष्टि पड़ रही होती है तब जातक को सरकारी नौकरी प्राप्ति में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। अतः यह जरूरी है कि आपके यह ग्रह पाप ग्रहों से बचे हुए रहें।
= अगर जातक का लग्न मेष, मिथुन, सिंह, वृश्चिक, वृष या तुला है तो ऐसे में शनि ग्रह और गुरु(ब्रहस्पति) का एक-दूसरे से केंद्र या त्रिकोण में होना, सरकारी नौकरी के लिए अच्छा योग उत्पन्न करते हैं।
= केंद्र में अगर चन्द्रमा, ब्रहस्पति एक साथ होते हैं तो उस स्थिति में भी सरकारी नौकरी के लिए अच्छे योग बन जाते हैं। साथ ही साथ इसी तरह चन्द्रमा और मंगल भी अगर केन्द्रस्थ हैं तो सरकारी नौकरी की संभावनायें बढ़ जाती हैं।
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= कुंडली में दसवें घर के बलवान होने से तथा इस घर पर एक या एक से अधिक शुभ ग्रहों का प्रभाव होने से जातक को अपने करियर क्षेत्र में बड़ी सफलताएं मिलतीं हैं तथा इस घर पर एक या एक से अधिक बुरे ग्रहों का प्रभाव होने से कुंडली धारक को आम तौर पर अपने करियर क्षेत्र में अधिक सफलता नहीं मिल पाती है।
ज्योतिष के अन्दर इस तरह की समस्या के लिए उपयुक्त उपचार भी मौजूद हैं। जातक की कुंडली का पूरा आंकलन करने के बाद ही उपायों को सुझाया जा सकता है। जो शुभ ग्रह कमजोर हैं उन्हें बलवान बनाकर और अशुभ ग्रहों को शांत कर, इस तरह की समस्याओं का अंत किया जा सकता है।
Article # 6
कुंडली के वह योग जो व्यक्ति को बनाते हैं एक सफल उद्यमी
आज हर व्यक्ति चाहता है कि उसका अपना कोई व्यवसाय हो। बेशक वह छोटा हो किन्तु अपने किसी व्यवसाय की बात ही निराली होती है। कई बार हम बहुत चुनौतियों का सामना करते हुए कोई अपना काम शुरू भी कर देते हैं लेकिन वहां हम सफल होंगे या असफल यह कोई नहीं जानता है। किन्तु व्यक्ति की जन्म कुंडली को देखकर यह बताया जा सकता है कि क्या आप अपना व्यवसाय शुरू कर सकते हो? या वह उत्तम समय कब आयेगा जब आप अपना कोई काम प्रारंभ कर सकते हैं?
= जन्म कुंडली में कर्म (कार्य) का स्थान दसवां घर होता है। अगर किसी व्यक्ति का कर्म स्थान अच्छा है तो उस व्यक्ति का व्यवसाय अच्छा चलने की संभावना ज्यादा रहती हैं।
आइये एक नजर डालते हैं कुंडली के उन योगों पर जो व्यक्ति के व्यवसाय को सफल बनाने में मदद करते हैं
1. अगर कुंडली के कर्म स्थान में ब्रहस्पति बैठा हो (जो भाग्य का मालिक होता है) तो यह केंद्रादित्य योग बनता है। यदि किसी जातक की कुंडली में यह योग होता है तो उस व्यक्ति का व्यवसाय अन्य जातकों की तुलना में अच्छा चलता है।
2. अगर कर्म स्थान पर बुध या सूर्य की दृष्टी हो या इन ग्रहों में से कोई ग्रह कर्म के स्थान (दसवें भाव) में विराजमान हो तो यह लक्ष्मी नारायण योग बनता है। इस प्रकार के जातकों को व्यवसाय में लाभ प्राप्त होने के अवसर ज्यादा प्राप्त होते हैं।
3. जातक की जन्म कुंडली में अगर मंगल उच्च का होकर कर्म भाव में विराजमान है तो ऐसे व्यक्ति को व्यवसाय और विदेश यात्रा के अच्छे संयोग बन जाते हैं।
4. कुंडली के केंद्र में अगर कहीं भी गुरू और सूर्य या चंद्रमा और गुरु की युक्ति (मेल-मिलाप) बन रहा हो तो इस योग का सीधा प्रवाह कर्म को जाता है। शास्त्रों में इसे वर्गोतम योग बोला जाता है। इस योग में व्यक्ति को सभी प्रकार की सुख-सुविधायें प्राप्त होती हैं।
5. सप्तम दृष्टी सभी ग्रहों की होती है। ब्रहस्पति, सूर्य या मंगल इन शुभ ग्रहों में से किसी की भी दृष्टी अगर दसवें घर पर हो तब भी कर्म भाव में अच्छा फल व्यक्ति को प्राप्त होता रहता है।
6. राहू भी अगर कर्मभाव की तरफ देखता है या कर्म भाव में उच्च का होकर विराजमान हो तो यह भी योग व्यवसाय के लिए अच्छा माना जाता है। बेशक शनि, राहू और केतु अशुभ ग्रह माने जाते हैं किन्तु कई बार योग के कारण यह ग्रह अच्छे फल प्रदान कर देते हैं।
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Article # 7
केमद्रुम योग -
आपने कुंडली के ऐसे योगों के बारे में जरुर सुना होगा जिनमें व्यक्ति राजा तक बन जाता है। निर्धन व्यक्ति भी धनवान बन जाता है। ऐसे योग भी जरुर देखें होंगें जिनमें रातों रात जातक प्रसिद्धि पा जाते हैं। मंझे हुए कलाकार बन जाते हैं। या फिर एक सरकारी नौकरी पाकर एक सुरक्षित जीवन व्यतीत करते हैं लेकिन कुछ ऐसे योग भी हैं जिन्हें योग की बजाय दोष कहना उचित होता है। ऐसा ही एक योग है केमद्रुम योग।
केमद्रुम योग वाले जातक जीवन में निर्धनता के लिये अभिशप्त होते हैं। कुछ जातकों की कुंडली में तो यह इतना प्रबल हो सकता है कि उनकी मृत्यु के बाद अत्येंष्टि तक में भारी दिक्कतें आती हैं। आइये जानते हैं क्या है यह केमद्रुम योग और किन परिस्थितियों में बनता है यह अशुभ फल दायी और कब इसमें मिल सकते हैं शुभ फल?
कब बनता है केमद्रुम योग
जब जातक की कुंडली में चंद्रमा अकेला हो और उसके अगल-बगल अन्य भावों में कोई ग्रह न हो तो इस स्थिति में केमद्रुम योग बनता है। लेकिन इसी स्थिति में जब चंद्रमा पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि न पड़ रही हो और वह स्वयं नीच का हो, पापी व क्रूर ग्रह उसे देख रहे हों तो यह बहुत ही अशुभ फल देने वाला योग बन जाता है। इस तरह के योग में जन्में जातक को दर-दर की ठोकर खाने पर मजबूर होना पड़ता है। कई बार तो भीख मांगकर जीवन यापन करने तक की नौबत जातक पर आन पड़ती है अन्यथा तंगहाली में तो उसे बशर करना ही पड़ता है।
हालांकि कुछ ज्योतिषाचार्य मानते हैं कि जब चंद्रमा के आगे पीछे के भावों में शुभ ग्रह न हों या चंद्रमा से दूसरे और द्वादश भाव में कोई भी ग्रह न हो तो इस स्थिति में बनने वाले केमद्रुम योग के अशुभ प्रभावों को कुछ उपायों से कम किया जा सकता है। यह योग दरअसल व्यक्ति को जीवन में संघर्ष करने की क्षमता एवं ताकत प्रदान करने वाला हो सकता है। कुछ उपायों को अपनाकर जातक भाग्य का निर्माण कर सकता है। लेकिन यह तय है कि इस योग में उत्पन्न हुये जातक को दरिद्रता का दंश झेलना पड़ता है, उसे वैवाहिक और संतान पक्ष का सुख भी प्राप्त नहीं हो पाता। परिजनों को भी ऐसे जातक का सुख नहीं मिल पाता, कुछ जातकों के स्वभाव में तो हद दर्जे की धृष्टता भी मिलती है।
भंग भी हो जाता है केमद्रुम योग
ज्योतिष शास्त्र में कुछ भी असंभव नहीं है और बात अगर भाग्य की हो तो कहा जाता है कि किसी का भाग्य पलटने में देर नहीं लगती। ऐसा ही केमद्रुम योग के बारे में भी है। कुछ ऐसी विशेष दशाएं भी जातक की कुंडली में बनती हैं जिनमें केमद्रुम योग के अशुभ प्रभाव कम हो जाते हैं बल्कि कई बार तो तो बिल्कुल समाप्त होकर शुभ फल देने वाले हो जाते हैं।
ऐसा तब होता है जब कुंडली में लग्न से केंद्र में चंद्रमा या कोई ग्रह हो तो केमद्रुम अप्रभावी हो जाता है। चंद्रमा सभी ग्रहों से दृष्ट हो या चंद्रमा शुभ स्थान में हो या चंद्रमा के शुभ ग्रहों से युक्त हो या फि पूर्ण चंद्रमा लग्न में हो अथवा दसवें भाव में उच्च का हो अन्यथा केंद्र में पूर्ण बली हो तो भी केमद्रुम योग भंग हो जाता है। सुनफा अनफा या दुरुधरा योग यदि कुंडली में बन रहे हों तो भी केमद्रुम योग भंग माना जाता है। चंद्रमा से केंद्र में अन्य ग्रह के होने पर भी केमद्रुम योग के अशुभ प्रभाव भंग हो जाते हैं।
केमद्रुम योग - अशुभ प्रभावों से बचने के उपाय
केमद्रुय योग के अशुभ प्रभावों को आप जान चुके हैं जाहिर है आप भी इन अशुभ प्रभावों से बचने के उपाय के बारे में सोच रहे होंगे तो यहां आपको बता रहे हैं केमद्रुम योग के अशुभ प्रभावों से बचने के कुछ आसान से उपाय।
= शिव का तात्पर्य ही कल्याण होता है इसलिये भगवान भोलनाथ यानि भगवान शिवशंकर की पूजा करने से बहुत लाभ मिलता है। साथ ही सोमवार को चित्रा नक्षत्र के समय से लगातार चार वर्ष तक पूर्णिमा उपवास करें तो इससे भी केमद्रुम योग के अशुभ प्रभाव कम होने की मान्यता है।
= घर में दक्षिणावर्ती शंख स्थापित कर नियमित रूप से श्री सूक्त का पाठ करना भी इसमें लाभ देता है।
=भगवान शिव के साथ-साथ माता लक्ष्मी की स्तुति भी विशेष रूप से लाभकारी होती है। लेकिन ऐसा करने में परेशानी यह हो सकती है कि कहीं आप मंत्रोच्चारण सही तरीके से न कर पायें तो, या फिर आपको पूजा की विधि ही ज्ञात न हो इसलिये हमारी सलाह है कि इसके लिये ज्योतिषशास्त्र में पारंगत किसी विद्वान ज्योतिषाचार्य की सहायता लें। देश-भर में जाने-माने ज्योतिषाचार्य ज्योतिर्विद् घनश्यामलाल स्वर्णकार से परामर्श करने के लिये आप यहाँ click करें |
लेखक - ज्योतिर्विद् घनश्यामलाल स्वर्णकार
Article # 8
तलाक - ज्योतिषीय कारण
लेखक- ज्योतिर्विद् घनश्यामलाल स्वर्णकार
वर्तमान समय में जब स्त्री-पुरुष कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहे हों वहाँ अब तलाक शब्द ज्यादा सुनाई देने लगा है. इसका एक कारण सहनशीलता का अभाव भी है.
तलाक के कारणों का आज हम ज्योतिषीय आधार पर विश्लेषण करने का प्रयास करते हैं. कुंडली में ऎसे कौन से योग हैं जिनके आधार व्यक्ति का तलाक हो जाता है या किन्हीं कारणो से पति-पत्नी एक-दूसरे से अलग रहना आरंभ कर देते हैं.
जन्म कुंडली में लग्नेश व चंद्रमा से सप्तम भाव के स्वामी ग्रह शुक्र ग्रह की स्थिति से प्रतिकूल स्थिति में स्थित हों.
कुंडली में चतुर्थ भाव का स्वामी छठे भाव में स्थित हो या छठे भाव का स्वामी चतुर्थ भाव में हो तब यह अदालती तलाक दर्शाता है अर्थात पति-पत्नी का तलाक कोर्ट केस के माध्यम से होगा.
बारहवें भाव के स्वामी की चतुर्थ भाव के स्वामी से युति हो रही हो और चतुर्थेश कुंडली के छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित हो तब पति-पत्नी का अलगाव हो जाता है.
अलगाव देने वाले ग्रह शनि, सूर्य तथा राहु का सातवें भाव, सप्तमेश और शुक्र पर प्रभाव पड़ रहा हो या सातवें व आठवें भावों पर एक साथ प्रभाव पड़ रहा हो.
जन्म कुंडली में सप्तमेश की युति द्वादशेश के साथ सातवें भाव या बारहवें भाव में हो रही हो.
सप्तमेश व द्वादशेश का आपस में राशि परिवर्तन हो रहा हो और इनमें से किसी की भी राहु के साथ हो रही हो.
सप्तमेश व द्वादशेश जन्म कुंडली के दशम भाव में राहु/केतु के साथ स्थित हों.
जन्म लग्न में मंगल या शनि की राशि हो और उसमें शुक्र लग्न में ही स्थित हो, सातवें भाव में सूर्य, शनि या राहु स्थित हो तब भी अलगाव की संभावना बनती है.
जन्म कुंडली में शनि या शुक्र के साथ राहु लग्न में स्थित हो. जन्म कुंडली में सूर्य, राहु, शनि व द्वादशेश चतुर्थ भाव में स्थित हो.
जन्म कुंडली में शुक्र आर्द्रा, मूल, कृत्तिका या ज्येष्ठा नक्षत्र में स्थित हो तब भी दांपत्य जीवन में अलगाव के योग बनते हैं.
कुंडली के लग्न या सातवें भाव में राहु व शनि स्थित हो और चतुर्थ भाव अत्यधिक पीड़ित हो या अशुभ प्रभाव में हो तब तब भी अलग होने के योग बनते हैं.
शुक्र से छठे, आठवें या बारहवें भाव में पापी ग्रह स्थित हों और कुंडली का चतुर्थ भाव पीड़ित अवस्था में हो.
षष्ठेश एक अलगाववादी ग्रह हो और वह दूसरे, चतुर्थ, सप्तम व बारहवें भाव में स्थित हो तब भी अलगाव होने की संभावना बनती है.
जन्म कुंडली में लग्नेश व सप्तमेश षडाष्टक अथवा द्विद्वार्दश स्थितियों में हों तब पति-पत्नी के अलग होने की संभावना बनती है.
लंबे समय तक चलने वाले मुकदमों का ज्योतिषीय विशलेषण |
कई बार पति-पत्नी की आपसी रजामंदी से तलाक जल्दी हो जाता है तो कई बार दोनो अपनी ही किसी जिद को लेकर अड़ जाते हैं और कोर्ट में वर्षो तक मुकदमा चलता ही रहता है. आइए लंबे समय तक चलने वाले मुकदमों के बारे में जानें.
यदि जन्म कुंडली में षष्ठेश वक्री अवस्था में स्थित है तब तलाक के लिए मुकदमा बहुत लम्बे समय तक चलता है.
यदि जन्म कुंडली में अष्टमेश की छठे भाव पर दृष्टि हो तब मुकदमा बहुत लम्बे समय तक चलता है.
यदि वक्री ग्रह की आठवें भाव पर दृष्टि हो, विशेषकर शुक्र की तब भी कोर्ट केस बहुत लंबे समय तक चलते हैं.
दाम्पत्य सुख में वक्री व अस्त शुक्र तथा मंगल का होना |
सुखी वैवाहिक जीवन के लिए पुरुषो की कुंडली में शुक्र को देखा जाता है और स्त्रियों की कुंडली में मंगल को. यदि दोनो ग्रह शुभ अवस्था में नहीं है तब वैवाहिक जीवन में सुख का अभाव देखा जा सकता है. आइए शुक्र व मंगल से संबंधित कुछ बातों पर विचार करते हैं.
पुरुष की जन्म कुंडली में वक्री शुक्र हो तब व्यक्ति यौनाचार को लेकर पूर्ण रुप से विरक्त होगा या अति कामी होगा. यही स्थिति स्त्रियों की कुंडली में मंगल को लेकर भी है. यदि स्त्री जातक की कुंडली में मंगल वक्री अवस्था में स्थित है तब वह स्त्री पूर्ण रुप से कामी होगी या बिलकुल विरक्त होगी.
स्त्री हो या पुरुष हो, यदि जन्म कुंडली में नीच या वक्री मंगल पर अशुभ ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो तब वैवाहिक जीवन में बहुत सी समस्याओं का सामना उन्हें करना पड़ता है.
यदि स्त्री की जन्म कुंडली में मंगल अस्त हो तब वह नपुंसक बनाता है या फिर यौन इच्छा की कमी को दर्शाता है. यही स्थिति पुरुष की कुंडली में शुक्र को लेकर होती है.
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दुर्घटना तथा चोट लगने के योग
चोट व दुर्घटना में शामिल भाव व ग्रह
जन्म कुंडली के त्रिक भाव सबसे अशुभ समझे जाते हैं और इनके भावेशों को भी अशुभ ही समझा जाता है.
आठवें भाव तथा अष्टमेश की भूमिका भी आती है.
जन्म कुंडली में राहु,केतु, शनि व मंगल को भी देखा जाता है. मंगल को चोट लगने का कारक माना ही जाता है.
यदि वाहन से दुर्घटना के योग देखने हों तब शुक्र, चतुर्थ भाव तथा चतुर्थेश का विश्लेषण किया जाता है.
यदि कोई दो पापी ग्रह परस्पर षडाष्टक योग में स्थित हैं तब उनकी स्थिति अशुभ समझी जाती है.
परस्पर षडाष्टक स्थिति में बैठे ग्रह की दशा चलने पर यदि गोचर भी प्रतिकूल ही चल रहा हो तब दुर्घटना होने की संभावना ज्यादा बनती है.
दुर्घटनाओं को जन्म कुंडली के साथ वर्ग कुंडलियो में भी देखा जाना चाहिए और तब किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जाना चाहिए. यदि दोनो में ही दुर्घटना के योग बनते हैं तभी दुर्घटना होगी अन्यथा कम में ही बात टल जाएगी.
जन्म कुंडली में दुर्घटना होने के योग |
जन्म कुंडली में आठवाँ भाव अथवा अष्टमेश, मंगल तथा राहु से पीड़ित होने पर दुर्घटना होने के योग बनते हैं.
सारावली के अनुसार शनि, चंद्रमा और मंगल दूसरे, चतुर्थ व दसवें भाव में होने पर वाहन से गिरने पर बुरी दुर्घटना देते हैं.
जन्म कुंडली में सूर्य तथा मंगल चतुर्थ भाव में पापी ग्रहों से दृष्ट होने पर दुर्घटना के योग बनते हैं.
सूर्य दसवें भाव में और चतुर्थ भाव से मंगल की दृष्टि पड़ रही हो तब दुर्घटना होने के योग बनते हैं.
निर्बली लग्नेश और अष्टमेश की चतुर्थ भाव में युति हो रही हो तब वाहन से दुर्घटना होने की संभावना बनती है.
लग्नेश कमजोर हो और षष्ठेश, अष्टमेश व मंगल के साथ हो तब गंभीर दुर्घटना के योग बनते हैं.
जन्म कुंडली में लग्नेश कमजोर होकर अष्टमेश के साथ छठे भाव में राहु, केतु या शनि के साथ स्थित होता है तब गंभीर रुप से दुर्घटनाग्रस्त होने के योग बनते हैं.
जन्म कुंडली में आत्मकारक ग्रह पापी ग्रहों की युति में हो या पापकर्तरी में हो तब दुर्घटना होने की संभावना बनती है.
जन्म कुंडली का अष्टमेश सर्प द्रेष्काण में स्थित होने पर वाहन से दुर्घटना के योग बनते हैं.
जन्म कुंडली में यदि सूर्य तथा बृहस्पति पीड़ित अवस्था में स्थित हों और इन दोनो का ही संबंध त्रिक भाव के स्वामियों से बन रहा हो तब वाहन दुर्घटना अथवा हवाई दुर्घटना होने की संभावना बनती है.
जन्म कुंडली का चतुर्थ भाव तथा दशम भाव पीड़ित होने से व्यक्ति की गंभीर रुप से दुर्घटना होने की संभावना बनती है.
घाव तथा चोट लगने के योग |
यह मंगल की पीड़ित अवस्था के कारण होने की संभावना अधिक रहती है.
जन्म कुंडली में यदि मंगल लग्न में हो और षष्ठेश भी लग्न में ही स्थित हो तब शरीर पर चोटादि लगने की संभावना अधिक होती है.
जन्म कुंडली में मंगल पापी होकर आठवें या बारहवें भाव में स्थित होने पर चोट लगने की संभावना बनती है.
जन्म कुंडली में यदि मंगल, शनि और राहु की युति हो रही हो तब भी चोट अथवा घाव होने की संभावना बनती है.
चंद्रमा दूसरे भाव में हो, मंगल चतुर्थ भाव में हो और सूर्य दसवें भाव में स्थित हो तब चोट लगने की संभावना बनती है.
जन्म कुंडली के चतुर्थ भाव में सूर्य स्थित हो, आठवें भाव में शनि स्थित हो और दसवें भाव में चंद्रमा स्थित हो तब चोट लगने की अथवा घाव होने की संभावना बनती है.
जन्म कुंडली के छठे भाव में मंगल तथा चंद्रमा की युति हो तब भी चोट लगने की संभावना बनती है.
चंद्रमा तथा सूर्य जन्म कुंडली के तीसरे भाव में होने से भी चोट लगने की संभावना बनती है.
कुंडली का लग्नेश तथा अष्टमेश शनि और राहु या केतु के साथ आठवें भाव में स्थित हो तब भी चोट लगने की संभावना बनती है.
लग्नेश, चतुर्थेश तथा अष्टमेश की युति होने पर भी चोट लगने की संभावना बनती है.
जन्म कुंडली के लग्न में ही छठे भाव का स्वामी राहु या केतु के साथ स्थित हो.
जन्म कुंडली के छठे अथवा बारहवें स्थान में शनि व मंगल की युति हो रही हो.
जन्म कुंडली के लग्न में पाप ग्रह हो या लग्नेश की पापी ग्रह से युति हो और मंगल दृष्ट कर रहा हो.
और अधिक जानकारी के लिये परामर्श करें ज्योतिर्विद् घनश्यामलाल स्वर्णकार से।
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