कुंडली मिलान – मंगलिक दोष





भारतीय संस्कृति के सोलह संस्कारों में से प्रमुख विवाह संस्कार, दो नए अपरिचित जीवन साथियों में सह – संबंध स्थापित करता है |  प्रत्येक माता-पिता की यही आकांक्षा रहती है कि उसकी कन्या को श्रेष्ठ और उत्तम घर मिले, जिससे उसका दांपत्य जीवन सुखद व समृद्ध रहे | भारतीय संस्कृति में सफल जीवन के लिए सुखद दांपत्य एक अनिवार्य शर्त है | इसलिए  हिंदू संस्कृति में कन्या के विवाह से पूर्व वर-वधू के ग्रह नक्षत्रों के विषय में ज्योतिषी से परामर्श लेते रहे हैं | सुयोग्य ज्योतिषी की परामर्श निश्चित रूप से जन्म कुंडली के आधार पर विघ्न कारक ग्रह दोषों के निवारण में सहायक सिद्ध होती है |
सुखमय दांपत्य जीवन के लिए प्रमुखतः ये पांच बातें अनिवार्य है| 1. उत्तम स्वास्थ्य 2. आवश्यक भौतिक सुख सुविधाएं 3. रति सुख 4. सौभाग्य सुख  तथा समस्त आवश्यकताओं  की पूर्ति के लिए अच्छी क्रय शक्ति |ज्योतिष शास्त्र में आवश्यकताओं का विचार लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम तथा द्वादश भाव से किया जाता है| लग्न भाव से स्वास्थ्य, चतुर्थ से भौतिक सुख सुविधाओं की आवश्यक सामग्री, सप्तम से रति सुख ,अष्टम से आयु एवं जीवन में आने वाले अनेक विघ्न बाधा एवं अनिष्ट तथा द्वादश भाव से व्यय जो  क्रय शक्ति का घोतक है,  से किया जाता है| ज्योतिष शास्त्र में किसी भाव  की शुभता या अशुभता, उस भाव के स्वामी ग्रह की स्थिति पर निर्भर है | जो भाव अपने स्वामी या  शुभ ग्रह से दृष्ट या युत हो वह उस भाव से  संबंधित विषय वस्तु का पूर्ण सुख प्राप्त करता है | किंतु यदि भाव में कोई पाप ग्रह बैठा हो या किसी पापी या  क्रूर ग्रह से देखा जाता हो तो उस भाव  के शुभ फल को क्षीण या नष्ट कर देता है| ग्रहों में शनि, मंगल, सूर्य तथा राहु नैसर्गिक रूप से पापी ग्रह माने जाते हैं| मंगल पापी  होने के साथ-साथ तामसी प्रकृति के कारण क्रूर ग्रह भी है| केतु का प्रभाव मंगल के जैसा ही होता है इसलिए जन्म कुंडली में ज्योतिषी प्रायः मंगली  दोष को देखते हैं|

 जन्म कुंडली में लग्न चतुर्थ, सप्तम, अष्टम तथा द्वादश भाव में मंगल होने पर मंगलिक दोष माना जाता है| अर्थात जन्म लग्न से 1,4,7,8 या 12 वेंभाव  में कन्या की कुंडली में मंगल हो तो पति के लिए अनिष्टकारी होता है | यही स्थिति यदि पुरुष की कुंडली में हो तो पत्नी के लिए अनिष्टकारी है पर यह आवश्यक नहीं है कि हर दशा में इन स्थानों में बैठा हुआ मंगल अशुभ फल ही करता है| यदि यह सुनिश्चित होता तो पूर्वाचार्य ऐसा कदापि नहीं लिखते अर्थात मेष का मंगल लग्न में, धनु का बारहवें भाव में, वृश्चिक का चौथे घर में, वृष का सातवें घर में और कुंभ का अष्टम भाव में हो तो दोष नहीं होता | यही मंगल सिंह लग्न वाली कुंडली में केंद्र और त्रिकोण का स्वामी होता है तब अति शुभ कारक  सिद्ध होता है| इसके अतिरिक्त मंगलिक दोष के अनेक परिहार बताए गए हैं| वर – कन्या की किसी एक की कुंडली में उक्त भावों  में यदि शनि, सूर्य, राहु या केतु में से कोई पाप ग्रह हो तो मंगल का दोष दूर हो जाता है |
दांपत्य जीवन को सुखमय या दुखमय  बनाने के लिए अकेला मंगल कदापि उत्तरदाई नहीं है | इसलिए उक्त स्थानों में मंगल को देखकर अमंगल की आशंका नहीं रखनी चाहिए | कई बार कन्या की जन्म कुंडली में सुखद वैवाहिक जीवन के योग होते हुए भी मंगलिक दोष मानकर अच्छे संबंधों को भी छोड़ दिया जाता है| और कई बार मंगलिक दोषों के परिहार या दोष निवारण करने पर भी दांपत्य जीवन सुखी नहीं रहता| जन्म कुंडली में केवल मंगल की स्थिति को आधार  न मानकर दांपत्य जीवन को  दुखमय बनाने वाले शनि आदि अन्य पाप ग्रहों का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए |
जन्म कुंडली में सप्तम भाव, सप्तमेश तथा सप्तम भाव कारक ग्रह शुक्र का शनि से संबंध होने पर वैवाहिक जीवन दुखमय होता है| यदि सप्तम भाव में शनि स्थित हो या सप्तम भाव में शनि की राशि मकर, कुंभ हो अथवा सप्तम भाव पर शनि की क्रूर दृष्टि हो, शुक्र भी यदि शनि की राशि मकर, कुंभ में हो या शुक्र क्रूर ग्रहों से दृष्ट या युत हो तो कन्या का दांपत्य जीवन निश्चित रूप से कष्ट कारक होता है | पर यदि ऐसे शुक्र या शनि पर गुरु ग्रह का शुभ प्रभाव हो तो मंगल दोष के साथ – साथ अन्य अशुभ ग्रहों का भी दुष्प्रभाव नष्ट हो जाता है| कुंडली में यदि द्वितीय भाव में चंद्र, शुक्र स्थित हो मंगल पर गुरु की पूर्ण शुभ दृष्टि हो केंद्रगत राहु – मंगल की युति हो तो भी मंगलिक दोष नहीं होता| यदि केंद्र या त्रिकोण में शुभ ग्रह 3,6 11वें भाव में स्वग्रही सप्तमेश हो तो मंगल दोष को नष्ट कर देता है| इन सब स्थितियों का निर्णय केवल जन्म लग्न से न कर चन्द्र लग्न और शुक्र स्थित  राशि को लग्न मान कर  भी करना चाहिए|  अतः मंगलिक  कुंडलियों का निर्णय बड़ी  सावधानी पूर्वक सर्वविध गुण-दोषों को  देखकर करना चाहिए| यह सार्वभौमिक नियम नहीं है कि इन स्थानों पर पड़ा मंगल हानिकारक होता हो |

लेखक –          ज्योतिर्विद्ः घनश्यामलाल स्वर्णकार|
अधिक जानकारी के लिये परामर्श करें ज्योतिर्विद् घनश्यामलाल स्वर्णकार  से।

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