वाक् सिद्धि के लिए बसंत पंचमी का महत्व
वाक् सिद्धि के लिए बसंत पंचमी का महत्व
बसंत पंचमी का यह उत्सव वसंत ऋतु के शुभ आगमन के उपलक्ष में मनाया जाता है वसंत को ऋतुराज अथार्थ सब रितुओं का राजा माना गया है| जिस प्रकार राजा के आगमन पर उत्सव मनाया जाना स्वभाविक ही है |
शास्त्रीय स्वरूप हेमाद्रि में लिखा है कि माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को हरी का पूजन करना चाहिए | इस दिन पूर्व विद्या तिथि लेनी चाहिए | इसलिए तेल लगाकर स्नान करके भूषण वस्त्र आदि धारण करें तथा नित्य और नैमित्तिक कार्यों को करके श्री विष्णु भगवान का प्रधानतया गुलाल से तथा सामान्य रीति से गंध पुष्प दीप दूध तथा नैवेध से विधिवत पूजा करनी चाहिए | इसके बाद स्त्री या पुरुष सबको पित्र देव का तर्पण करना चाहिए और चंदन तथा माला लगा कर ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए|
बसंत पंचमी को जिस का दूसरा नाम श्री पंचमी भी है सरस्वती देवी जो वाणी अधिष्ठात्री देवी है की पूजा होती है ब्रह्मवैवर्त पुराण में लिखा है कि श्री कृष्ण ने सरस्वती के ऊपर अति प्रसन्न होकर कहा कि यदि हमारे वरदान से माघ शुक्ल पंचमी के दिन तथा विद्यारंभ के दिन संसार में मनुष्य गण मन अधि 14 मनु, इन्द्रादिक देवता बड़े-बड़े, मुनिंद्र तथा मुक्ति की इच्छा करने वाले संत सिद्ध लोग नाग ,गंधर्व और किन्नर यह सब लोग प्रसन्नता से प्रत्येक कल्प मैं आपकी जगह विधि पूजा करेंगे भगवती सरस्वती की पूजा नीचे लिखे प्रकार से करनी चाहिए|
बसंत पंचमी के 1 दिन पहले नियम पूर्वक रहे दूसरे दिन संयमपूर्वक प्रातः काल स्नान कर संध्या तर्पण आधी नित्य कर्म से निवृत्त होकर भक्ति पूर्ण कलश स्थापना करें | पहले गणेश सूर्य विष्णु शंकर आदि की नवेद धूप दीप आदि से पूजा करने के बाद अभीष्ट फल देने वाली सरस्वती की पूजा करें इस दिन सरस्वती स्त्रोत का श्रद्धा पूर्वक पाठ करें और सरस्वती मंत्र की माला का जाप करें मंत्र : ------- ओम हरि ओम ओम हरि ओम भगवते वासुदेवाय नमः
वर्तमान स्वरूप बसंत पंचमी का त्योहार बसंत के आगमन पर उत्सव के रूप में मनाया जाता है | इस दिन पीत वस्त्र आदि धारण कर पहले पहले गुलाल उड़ाते है | उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिलों में आज के दिन ताल ठोका जाता है अर्थात फाग या होली गानों की शुरुआत की जाती है| इस दिन से लेकर फाल्गुन पूर्णिमा तक होली बड़ी मस्ती व उल्लास से गाई जाती है | किसान लोग अपने खेत से गेहूं व जौ की नई बालि को घर लाते हैं और उसमें घी गुड़ मिलाकर अग्नि में हवन करते हैं | हमारे यहां किसी नए अन्न या फल को ग्रहण करने के पूर्व किसी पुण्य तिथि को देवता या अग्नि को अर्पण कर खाते हैं | बिना देवता को चढ़ाएं खाना निषिद्ध माना जाता है अतः इस दिन नए जो और गेहूं को अग्नि में हवन करने के बाद लोग उसे व्यवहार में या उपयोग में लेने लगते हैं बसंत पंचमी का यही लौकिक स्वरूप है |
महत्व - बसंत पंचमी का त्योहार हमारा सामाजिक त्योहार है | यह हमारे उस आनंदातिरेक का प्रतीक है जिसे हम ऋतुराज बसंत के आने पर अपने हृदय मैं अनुभव करते हैं | यह हमारे हार्दिक उल्लास की प्रतिभूति है बसंत रितुओं का राजा कहलाता है क्योंकि इस समय पतझड़ के कारण पत्तों से हीन पेड़ों में नए-नए कोमल पत्ते निकल आते हैं जंगल में पलाश के वृक्षों पर लाल लाल नए-नए पुष्पों को अपनी ओर बरबस खींच लेते हैं | रंग-बिरंगे फूलों को देख कर मन हर्षित हो जाता है कोयल की कूक कानों में अमृत उड़ेलने लगती है आम के वृक्ष नई मंजरी से सुशोभित हो जाते हैं | पराग पान करने के लिए फूलों पर बैठे भंवरों की मीठी और मधुर भिनभिनाहट मन को चुरा लेती है जोरों से बहती हुई पुरवइया वायु धूल उड़ाती हुई प्रकृति से मानव के लिए करने लगती हैं हरे हरे खेतों में सरसों के पीले पीले फूलों को देख मन फूला नहीं समाता जिधर देखिए उधर ही नया रंग और नया समा दिखाई पड़ता है लोगों के हृदय में एक विचित्र प्रकार की मस्ती छाई रहती है | इस प्रकार प्रकृति में मनोहरता लाने वाले वह मन को आनंदित करने वाले बसंत के आगमन पर उत्सव मनाना स्वभाविक ही तो है इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा अर्चना का विशेष महत्व है|
लेखक - ज्योतिर्विद्ः घनश्यामलाल स्वर्णकार
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