चरण स्पर्श की विवेचना और सामुद्रिक लक्षण
अपनों से बड़ों का नम्रतापूर्वक अभिवादन करने से आयु, विद्या , यश, एवं बल की वृद्धि होती है |
चरण स्पर्श और चरण वंदना भारतीय संस्कृति में सभ्यता और सदाचार का प्रतीक माना जाता है | आत्म समर्पण का यह भाव व्यक्ति के आस्था और श्रद्धा को प्रगट करता है |सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार व्यक्ति के लक्षणों के अध्ययन- मनन तथा विश्लेषण का एक श्रेष्ठ माध्यम भी है |यदि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सोचा जाये तो चरण स्पर्श की यह क्रिया व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक रूप से पुष्ट करती है | यही कारण है की गुरुओं, (अपनों से वरिष्ठ )ब्राह्मणों एवं संत पुरुषों के अंगूठे की पूजन परिपाटी अति-प्राचीन काल से चली आ रही है| जो अब धीरे- धीरे पाश्चात प्रभाव के कारण विलुप्त सी होती जा रही है| इसी परंपरा का अनुसरण करते हुए परवर्ती मंदिर मार्गी जैन धर्मावलम्बियों में मूर्ति पूजा का यह विधान प्रथम दक्षिण पैर के अंगूठे से पूजा आरम्भ करते हैं तथा वहां से चन्दन लगाते हुए देव प्रतिमा के मस्तक तक पहुँचते हैं |
पुराण कथाओं में गुरुजन अर्थात प्रवर और ब्राहमणों की चरण रज की महिमा में कहा गया है कि जो फल कपिला नामक गाय के दान से प्राप्त होता है और कार्तिक व ज्येष्ठ मासों में पुष्कर स्नान, दान, पुण्य आदि से मिलता है वह पुण्यफल ब्राह्मण ( वर )के पाद प्रक्षालन एवं चरण से प्राप्त होता है| हिन्दू संस्कारों में विवाह के समय कन्या के माता पिता द्वारा इसी भाव से वर का पाद प्रक्षालन किया जाता है| कुछ विद्वानों की ऐसी मान्यता है की शरीर स्थित प्राण वायु के 5 स्थानों में से पैर का अंगूठा भी एक स्थान है |
1.नासिक का अग्रभाग
2.ह्रदय प्रवेश
3.नाभि स्थान
4.पाँव
5.पाँव के अंगूठे में प्राण वायु रहती है
इसका प्रमाण है “चीनी चिकित्सा” जिसके द्वारा अंगूठे व पाँव के तलवे में विभिन्न शिराओं में सुई चुभाकर अनेक बीमारियों का इलाज़ किया जाता है| चिकित्सा विज्ञान की यह मानता है की पाँव के अंगूठे में कफ ग्रंथि (Pituitary-Gland) की जडें होती है,जिनके मर्म स्पर्श या चोट से मनुष्य की जान जा सकती है| यह भी जानते है की रावण ने अपने भुजबल से पृथ्वी को शत्रुहीन कर दिया था| अपनी शक्ति के मद में राक्षस रावण ने कैलाश पर्वत को उठाने का साहस करना चाहा|
उस समय भयभीत हुई पार्वती की प्रार्थना से भगवान शंकर ने अपने पैर के अंगूठे के अग्र भाग से पर्वत को धीरे से दबाया| इतने मात्र से ही रावण को पातल में भी आश्रय न मिल सका| अतः यह निश्चित प्रतीत होता है कि पैर के अंगूठे के द्वारा भी शक्ति का संचार होता है| मनुष्य के पाँव के अंगूठे में विद्धुत संप्रेक्षणीय शक्ति होती है| यही कारण है की अपने प्रवर जनों के नम्रता पूर्वक चरण स्पर्श करने से जो आशीर्वाद मिलता है उससे अविद्या रुपी अंधकार नष्ट होता है तथा व्यक्ति की प्रगति का मार्ग प्रशक्त होता है|
जैसा की ऊपर कहा जा चुका है कि चरण स्पर्श, चरण वंदन की परंपरा व्यक्ति के शुभाशुभ लक्षणों की जानकारी का भी एक सरल साधन है| सामुद्रिक शास्त्र में समस्त स्त्री पुरुषों के प्रत्येक अंग-प्रत्यंग का अत्यधिक सूक्ष्मता से अध्ययन कर शुभाशुभ लक्षण बताने की क्षमता है| पैरों की बनावट, पादतल, पादचिह्नों तथा उपांगों के लक्षणों, रेखाओं व चिह्नों के आधार पर व्यक्ति के शुभाशुभ लक्षणों का वर्णन भागवत् पुराण, वाल्मीकि रामायण, रामचरितमानस तथा अनेक जैन ग्रंथों में अनेक प्रसंगों में स्थान-स्थान पर किया गया है| अतः इनकी प्रमाणिकता में कोई संदेह की गुंजाईश नही लगती है| उन्हें आधार मानकर प्रसंगवश यहाँ कुछ चुने हुए लक्षणों का सांकेतिक परिचय मात्र प्रस्तुत है | यथा –
- जिस स्त्री के चरण चिकने, ऊँचे उठे हुए, ताम्रवर्ण के समान, लाल-लाल नखों से युक्त मत्स्य अंकुश, चक्र,तथा हल चिह्नों से सुशोभित एवं पसीने से रहित और कोमल तल वाले होते हैं वह सौभाग्यशालिनी सुलक्षणा होती है|
- जिसके चरण तल में अश्व, हस्ति, श्री, वृक्ष, यूप, बाण, यव, तोमर, ध्वज, चामर, माला, पर्वत, कुंडल, वेदी, शंख, छत्र, स्वतिक, रथ तथा अंकुश आदि चिह्न वाली स्त्रियाँ राज वल्लभा होती है|
- जिस महिला के चरण स्निग्ध, समान पद तल वाले, ताम्रवर्ण की आभा से सुशोभित नखों से युक्त सघन अंगुलिओं वाले तथा उन्नत अग्रभाग वाले होते है, वह समृद्ध एवं राज्य सुख भोग्या होती है|
- पाँव का उपरी भाग मांसल, उन्नत तथा कोमल होता है वह शुभ होता है|
- जिस स्त्री के पादतल एक दुसरे से हुए प्रतीत होते हैं वह स्त्री पुजवती होती है|
- जिसके पैर का अंगूठा ऊँचा व गोल हो वह सौख्य देता है| चलते समय सभी अँगुलियों पृथ्वी को स्पर्श करें, ऐडियां समान हो तो सौभाग्यवती होती है| पाँव के तलुवे में गड्ढा होती है वे स्त्री-पुरुष शुभता को प्राप्त करने वाले होते हैं |
रेखाएं :- अंगूठे के मूल से मिलती हुई रेखा जो पादतल को दो भागों में विभक्त करती हो, किसी-किसी के पैरों में यह मध्यमा अंगुली के नीचे से भी निकलती है| ऐसी रेखा उत्तम राज्य सुख की देनी वाली होती है| यदि यह रेखा छोटी हो तो ऐसा व्यक्ति धनवान, गुणवान, यशस्वी और धर्मपरायण होता है| इसी प्रकार अनेक रेखाएं पादतल के भिन्न-भिन्न स्थानों से निकलती है, उन सबके विषयों में बताया जाना यहाँ संभव नही है|
इसी प्रकार तलवों में भिन्न-भिन्न स्थानों में तिल या वर्ण आदि के चिह्न होते हैं, जो भिन्न-भिन्न तरह के शुभाशुभ फलों के देने वाले होते हैं| जिस स्त्री पुरुष के दायें पाँव में तलवे में अचानक खुजली चले तो अकस्मात दूर की यात्रा के संकेत होते हैं और यदि बायें तलवे में खुजली चले तो रोग, धन हानि, अप्रिय समाचारों की प्राप्ति या किसी के द्वारा निंदा किये जाने के संकेत होते है| इनके विपरीत लक्षणों के होने पर उन्हें अशुभ मानना चाहिए |
लेखक – ज्योतिर्विद्ः घनश्यामलाल स्वर्णकार|
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