मानसिक संतुलन बैठाते ग्रह और रत्न
जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है ज्योतिष की भी एक वैज्ञानिक प्रकृति है और गणित के आधार पर ग्रहों की स्थिति, दशा, अंतर्दशा, प्रत्यंतर दशा आदि के फलित से व्यक्ति के मानसिक अस्वस्थता के कारण तथा समय का पता लगाया जा सकता है | जिस प्रकार किसी बीमारी को औषधि के द्वारा समाप्त किया या उसका प्रभाव कम किया जा सकता है, उसी प्रकार व्यक्ति पर प्रभाव डालने वाले ग्रह नक्षत्रों व राशियों आदि का समुचित अध्ययन करके ज्योतिष गणित के आधार पर इनका बल साधकर, दशाकर्म से समय का निर्धारण करते हुए मानसिक अस्वस्थता के कारण तथा समय का भी पता लगाया जा सकता है |
व्यक्ति के जीवन पर प्रभाव डालने वाले समस्त ग्रहों को दो वर्गों में विभाजित किया गया है : -
(1) शुभ वर्गा
(2) पाप वर्गा
ज्योतिषीय उपचार के दृष्टिकोण से यदि शुभ वर्गा ग्रह किसी भाव विशेष के लिए निर्बल हो तो उसे बलशाली बनाने के लिए ग्रह से संबंधित रत्न विधि पूर्वक उचित स्थान पर धारण करना चाहिए और यदि पापवर्गा ग्रह किसी भाव विशेष के लिए अधिक अशुभता प्रदान कर रहा हो तो उस ग्रह से पड़ने वाली किरणों को परावर्तित करने वाले अथवा शक्ति संतुलन हेतु संबंधित रत्न धारण करें |

इन सभी के प्रयोग से व्यक्ति में आत्मबल बढ़ता है जिससे उसकी कार्य क्षमता विकसित होती है | इस प्रकार व्यक्ति के मन पर सुधार की दिशा में सुप्रभाव पड़ता है जो उसके उपचार में सहायक सिद्ध होता है | रत्न प्रयोग के संबंध में यहां विशेष रूप से मेरा कथन इस प्रकार है कि गुणधर्म और प्रकृति के आधार पर ये रत्न तीन प्रकार के होते हैं | एक तो वे जो ग्रहों की किरणों को अपने आप में समाहित कर लेते हैं | दूसरे वे जो इन किरणों को वातावरण में परिवर्तित कर देते हैं | तीसरे वे जो इन किरणों को अपने पारदर्शिता के गुण के कारण व्यक्ति के शरीर में प्रवाहित कर देते हैं |
इनमें से प्रथम प्रकार के रत्नों की संख्या में जैसे- मोती, मूंगा, फिरोजा, चंद्रकांतमणि आदि गिनाए जा सकते हैं | इनकी विशेषता यह है कि यह रत्न संबंधित ग्रहों की किरणों को ही ग्रहण करते हैं और अपने आप में उन्हें समाहित कर व्यक्ति के रक्त को प्रवाहित करती हैं, जिससे व्यक्ति के रत्न की तासीर बदल जाती है और रक्त की तासीर बदलने से व्यक्ति के क्रियाकलापों में एक परिवर्तन आता है जिससे उसके व्यवहार में परिवर्तन आता है |
उदाहरण के तौर पर जैसे किसी व्यक्ति को बहुत क्रोध आता है | अधिक क्रोध आने का कारण मंगल की स्थिति पर निर्भर करता है या लग्न में स्थित राशि विशेष पर निर्भर करता है जैसे यदि मंगल किसी के लग्न में हो तो सामान्यतया उस व्यक्ति को क्रोध शीघ्र ही आयेगा | हम देखते हैं कि क्रोध के समय व्यक्ति का चेहरा सुर्ख हो जाता है, शरीर में रक्त का दौरा भी बढ़ जाता है |
उसकी इसी प्रकृति के कारण सामान्य व्यक्ति के बहुत से कार्य संपन्न नहीं हो पाते हैं | उनमें रुकावटें आ जाती हैं जिसके कारण उसे मानसिक तनाव होता है | व्यक्ति की इस प्रकृति में परिवर्तन लाने के लिए यदि उसे मोती ग्रहण करवा दिया जाए तो उसके क्रोध पर निश्चित नियंत्रण हो जाएगा क्योंकि मोती की विशेषता है कि वह चन्द्रमा की श्वेत एवं शीतल किरणों को ग्रहण कर अपने आप में संग्रहित कर लेता है जो व्यक्ति के शरीर में प्रवाहित करता रहता है | ऐसी स्थिति में उसके रक्त में तेजी नहीं आएगी जब रक्त में तेजी नहीं आएगी तो उसे क्रोध नहीं आएगा जब क्रोध नहीं आएगा तो उसके व्यवहार में सौम्यता रहेगी और सौम्य व्यवहार में उसके सभी कार्य कुशलतापूर्वक उसके हित में होते चले जाएंगे | व्यक्ति की रूचि के अनुसार उसके कार्य होते रहेंगे तो उसकी मानसिकता ठीक रहेगी, मन प्रसन्न रहेगा और मनोविकार नहीं होंगे | प्रत्येक कार्य को सोच समझकर करेगा इसलिए व्यक्ति की मानसिक स्थिति को ठीक करने के लिए ग्रहों को बल देने के लिए रत्नों का उपयोग किया जाता है |
लेखक – ज्योतिर्विद्ः घनश्यामलाल स्वर्णकार|
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