शुभाशुभ कर्मों के आधार पर ही फल देते हैं ग्रह अपने भ्रमण काल में
वैसे तो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड ही ग्रह नक्षत्रों के प्रभाव से प्रभावित हैं। फिर मानव जीवन तो इससे कैसे अछूता रह सकता है। जिसकी यथार्थता अनुभव द्वारा ही जानी जा सकती है। जीव जब गर्भ में आता है, तो आकाश, तेज ,अर्थ (भूमि) वायु और जल इन पन्चतत्वों के सूक्ष्मांश के साथ रवि की कक्षा से आत्मा, चन्द्रमा की कक्षा से मन और पूर्वार्जित कर्मानुसार तात्कालिक विष रश्मि वाले ग्रहों की कक्षाओं से विष तथा अमृत रश्मि वाले ग्रहों से अमृत लेकर अपनी माता की कुक्षि में मनोनय ,आनन्दरूप ,विज्ञानमय और वासनामय कोषों के साथ प्रवेश करता है। इस अवस्था में तत्कालीन आकाश में भ्रमण करते ग्रह अपनी उच्च, नीच ,मध्यम, अस्त ,मार्गी , वक्री आदि अवस्थाओं के अनुसार सभी ग्रहों के अपने-अपने गुणधर्म के अनुसार जातक सत्, रज्, तम् इन तीनों गुणों से युक्त होका जन्मोत्तर विशेषज्ञ , विज्ञ व अज्ञ कहलाता है|
गोचरस्थ ग्रहों का प्रत्येक मानव जीवन पर शारीरिक और मानसिक प्रभाव पड़ता है| जिससे जीवन में अनेक प्रकार के उतार चढ़ाव आते रहते हैं |शुभ कर्मों के प्रभाव से हम सुखानुभूति करते हैं अशुभ कर्मों के उदय होने पर जीव दुखी हो जाता है| ऐसे समय में उचित मार्ग निर्दिष्ट ना होने पर वह मिथ्यात्व मैं फंस जाता है | ग्रह किसी का अच्छा बुरा नहीं करते जैसे जीव ने शुभाशुभ कर्म किए हैं, उसे तो उन्हीं का फल भोगना पड़ता है और वही उदय में आ जाते हैं| ज्योतिष विज्ञान में इन सबके कारण और निवारण भी दिए गए हैं |सभी ग्रहों के मंत्र जाप, पूजा ,दान -पुण्य आदि का विधान तो है ही इसके अतिरिक्त रत्नों के धारण से भी ग्रहों के अनिष्ट प्रभाव को दूर किया जा सकता है| ध्यान देने की बात यह है की राहु, केतु ,शनि ये ग्रहण विशेष रूप से क्रूर कहे जाते हैं |शनि व राहु ग्रह का जब विपरीत प्रभाव होता है तो जीव की बुद्धि विपरीत कार्य करने लगती है |व्यक्ति सोचता कुछ है करता कुछ है और परिणाम कुछ और ही निकलता है |शनि व राहु वायु तत्व प्रधान ग्रह है शनि का विशेष कार्य बुद्धि विवेक को नष्ट करने का रहता है |राहु का कार्य एॆन -केन- प्रकारेण बनते कार्यों में रोड़ा अटकाना होता है| शनि के अशुभ प्रभाव से मुक्त होने के लिए भगवान शंकर की विशेष उपासना नियमित रूप से करना चाहिए| भगवान शिव के नित्य दूध मिश्रित जल का अभिषेक कर दीपक अवश्य जलावें। शिव सहस्त्रनाम का पाठ करें और ॐ नमः शिवाय मंत्र का जाप करें | | उसको नियंत्रित करने के लिए पवन तनय हनुमान जी की पूजा पाठ, मंत्र जाप आदि अत्यंत उपयोगी सिद्ध होते हैं |शनिवार को हनुमान जी के चोला चढ़ाना बहुत लाभप्रद है| इसके अतिरिक्त शनिवार को एक नक्त भोजन करें यथासंभव तेल का सेवन नहीं करें| काले साबुत उड़द, तिल व तेल का नित्य दान करें| शनिवार को शनि मंदिर में तेल चढ़ाएं और मंगलवार के दिन फलों का दान करना चाहिए| यदि संभव हो तो नित्य एक माला
आपदां पहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम् ! लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् !!
मंत्र का जाप करें | ग्रहों के दुष्प्रभावों को मंद करने के लिए पूजा की जाती है| जिनके अंतराय कर्म विशेष प्रबल हो उनको महामृत्युंजय मंत्र के नित्य जाप करने चाहिए |दान- लाभ ,भोग -उपभोग और बल वीर्य यह पांच प्रकार के अंतराय कर्म हैं| दान नही कर पाता ,भोग उपभोग की सामग्री के होते हुए भी उस को भोग नहीं पाता, कार्य करने की इच्छा शक्ति होते हुए भी कार्य करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता | मन कि अभिलाषाएं मर जाती है| अतः बताए अनुसार शिवार्चना सभी को करनी चाहिए |जैसे अच्छे आचरण पर कैदी की सजा भी कम कर दी जाती है उसी प्रकार अशुभ कर्म दान- पूजा पाठ, त्याग आदि शुभ कर्मों के प्रभाव से जल्दी उदय होकर अशुभ कर्म मंद पड़ जाते हैं |उनके कष्ट की अवधि भी कम हो जाती है|
अशुभ कर्मों के उदय होने पर कष्टों के माध्यम से हमारे धैर्य साहस और धर्म की परीक्षा होती है| ऐसी स्थिति में हमें घबराना नहीं चाहिए , डटकर मुकाबला करना चाहिए| सोना तपकर ही तो कुंदन बनता है |जीवन में संघर्ष करने के बाद ही दृढ़ता आती है| अनेक महान आत्माओं ने उपसर्ग सहे, अपने सत्य के मार्ग से विचलित नहीं हुए बल्कि अपने कर्मों को ही दोषी ठहराया ,किसी पर अनावश्यक दोषारोपण नहीं किया और अंत में लक्ष्य प्राप्त कर लिया और संसार सागर से मुक्त हो गए| किसी प्रकार के कष्ट या संकट आने पर हमें धैर्य से काम लेना चाहिए |कुछ त्याग कर देने से, नियम लेने से कष्टों का हरण जल्दी हो जाता है |अनेक शास्त्र पुराण साक्षी है जब किसी पर संकट आया उपसर्ग आया आस्था और त्याग का सहारा लेकर संकट को टाला |इतिहास साक्षी है भगवान राम ने भी ऐसे विकट संकट के समय रामेश्वरम की स्थापना कर विशेष पूजा अर्चना की है। फिर आपका विश्वास क्यों डगमगाता है ? जो दूसरों के दुखों को दूर करने का प्रयास करता है उसके दुख स्वयं ही दूर हो जाते हैं |जितना समय पैसा शक्ति हम दूसरों को दुखी करने में लगाते हैं ,यदि उसी को दूसरों को सुखी करने में लगाएं तो संसार के प्राणी सुखी हो सकते हैं |प्रत्येक जीवन के प्रति परोपकार करने वाला ही सुख का अनुभव करता है अतः शनि राहु व केतु जैसे पाप ग्रहों की दशा के निवारण के लिए उपरोक्तानुसार भगवान शंकर ही सक्षम हैं |
लेखक - ज्योतिर्विद्ः घनश्यामलाल स्वर्णकार
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