ग्रहों से सम्बंधित रोगों के योग – भाग 2
- यदि लग्न में सूर्य हो, लग्नाधिपति नीच का हो कर मंगल के साथ हो और उस पर चन्द्र की दृष्टि हो तो भी कुष्ठ रोग की संभावना रहती है |
- लग्न में सूर्य शत्रु राशी का हो तो दाद रोग होता है |
- यदि लग्न अथवा सातवें भाव में शनि शत्रु राशी का हो तो दांतों कि बीमारी होती है |
- यदि तृतीय भाव, तृतीयेश, बुध एवं चन्द्र पर क्रूर ग्रहों का कुप्रभाव हो तो व्यक्ति को सांस की नाली में कष्ट होता है| उसे सदैव जुकाम रहता है| गला ख़राब रहता है और गले का ऑपरेशन कराना पड़ता है|
- यदि बुध नीच का हो तो तृतीय राशि शनि राहु से ग्रसित हो तो व्यक्ति को दमा हो जाता है|
- यदि बुध की दोनों राशियां क्रूर ग्रहों से ग्रसित हों व लग्न पर क्रूर ग्रहों का प्रभाव हो तो व्यक्ति को सांस फूलने की बीमारी रहती है |
- यदि मंगल वृश्चिक राशि का हो, लग्न में शत्रु ग्रह के सात बुध बैठा हो अथवा मकर लग्न में, सूर्य बुध लग्न में हो तो व्यक्ति को चेचक होती है|
- क्षीण चन्द्र लग्न में स्थित हो और आठवें भाव में क्रूर ग्रह हो तो बालक जल्दी मर जाता है |
- यदि चन्द्र कमजोर होकर पाप ग्रहों के मध्य हो अथवा पाप ग्रहों से युक्त हो तो भी बालक जल्दी मर जाता है |
- यदि बुध और चन्द्र दोनों क्षीण होकर क्रूर ग्रहों के प्रभाव में हो तो बालक की बाल्यावस्था में मृत्यु होती है |
- गुरु या पंचमेश 6, 8, 12वें भाव में हो तो बोलने में कठिनाई होती है |
- यदि लग्न में शनि-राहु हो तो स्त्री-सुख नही होता |
- सप्तमेश, शुक्र तथा सप्तम भाव ग्रह से प्रभावित हो तो पत्नी-सुख नही होता |
- दूसरे भाव में मंगल, आठवें भाव में सूर्य और बारहवें भाव में राहु अथवा केतु हो तो भी पत्नी-सुख नही होता |
- लग्न में सूर्य अथवा शनि हो, सातवें भाव में शनि अथवा सूर्य हो तो स्त्री-सुख नही रहता |
- दुसरे भाव में शनि और केतु हो अथवा मंगल और राहु हो तो व्यक्ति सख्त भाषा बोलता है |
- यदि लग्न में शनि, दुसरे सूर्य और आठवें मंगल हो तो भी शरीर का विकास नहीं होता |
- अष्टमेश, पंचमेश के स्थान परिवर्तन से प्रसव पीड़ा होती है |
- यदि पंचम भाव में नीच का सूर्य या मंगल हो तो स्त्री के गर्भ का ऑपरेशन जरुर होता है |
- चौथे भाव में सूर्य अथवा मंगल हो, उस पर राहु अथवा शनि की दृष्टि हो तो व्यक्ति ऊँचे स्थान से जरुर गिरता है |
- मंगल, शनि, चन्द्र ग्रह दुसरे, सातवें, चौथे हो तो व्यक्ति की मृत्यु जल में डूबने से होती है |
- आठवें भाव में कर्क का मंगल हो, अष्टमेश चन्द्र, राहु अथवा शनि के सात हो तो डूबने से मृत्यु होती है |
- शनि, कर्क और सूर्य मकर में हो तो जलोदर की बीमारी होती है |
- कर्क राशी में पड़ा सूर्य शनि से दृष्ट हो तो बवासीर की बीमारी होती है |
- कर्क राशि स्थित सूर्य पर मंगल की दृष्टि हो तो भगंदर रोग होता है |
- कुंभ का सूर्य, हृदय रोग और मकर का सूर्य नर्वसनेस पैदा करता है |
- अष्टम भाव में पड़ा सूर्य, मंगल और शनि से दृष्ट हो और चंद्र राहु के प्रभाव में हो तो मिर्गी रोग होता है |
- शत्रु राशि के सूर्य एवं चंद्र नेत्र रोगी बनाते हैं |
- अष्टम भाव में मंगल, सूर्य और राहु हो तो कुष्ठ रोग होता है |
- वृश्चिक राशि का सूर्य, शुक्र से दृष्ट हो तो भी कुष्ठ रोग की संभावना रहती है |
- वृषभ लग्न की कुंडली हो और सूर्य शुक्र के घर में हो अथवा शुक्र सूर्य के घर में हो तो हार्टअटैक होता है |
- यदि लग्न अशुभ हो, सूर्य शत्रु राशि का हो और सूर्य की दशा शुक्र के अंदर में गुप्तांग रोग, सिर-पीड़ा, कुष्ठ रोग और कंठ रोग हो सकता है |
- गुरु की दशा शुक्र के अंतर में पथरी, शुगर एवं गुप्तांग रोग हो सकते हैं |
- इसी प्रकार शुक्र की महादशा में गुरु के अंतर में भी शुगर, पथरी एवं जिगर की खराबी हो सकती है |
- मंगल की दशा व केतु के अंतर में अथवा केतु की दशा में मंगल के अंतर में ब्लड कैंसर की संभावना रहती है तथा सिर में चोट अवश्य लगती है |
- मंगल की दशा शनि के अंतर में एक्सीडेंट अथवा ऑपरेशन की संभावना होती है |
- चंद्र की दशा मंगल के अंतर में ब्लड प्रेशर हो सकता है यदि मंगल नीच का हो और राहु से प्रभावित हो तो जल दुर्घटना हो सकती है |
- बुध की दशा सूर्य के अंतर में त्वचा रोग हो जाता है |
लेखक – ज्योतिर्विद्ः घनश्यामलाल स्वर्णकार|
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