वास्तु के अनुसार भवन निर्माण

वास्तु शास्त्र के अनुसार किया गया भवन निर्माण 
सुव्यवस्थित दिशानुसार किये गये निर्माण  के ज्ञान को ही वास्तु कहते हैं। यह एक ऐसी पद्धति है जिसके सिद्धांतों को स्तंभ मानकर भवन का निर्माण किया जाता है |इसमें  दिशाओं को ध्यान में रखकर भवन निर्माण व उसका इंटीरियर डेकोरेशन  किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि वास्तु के अनुसार भवन निर्माण करने पर घर-परिवार में खुशहाली आती है। कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्ति होती है और घर में समृद्धि बनी रहती है |
वास्तु में दिशाओं का बड़ा महत्व है। वास्तु के अनुसार ऐसा माना जाता है कि अगर आपके घर में गलत दिशा में कोई निर्माण होगा, तो उससे आपके परिवार को किसी न किसी तरह की हानि होगी, मान-सम्मान को ठेस पहुंचेगी | वास्तु में आठ महत्वपूर्ण दिशाएँ होती हैं, भवन निर्माण करते समय जिन्हें ध्यान में रखना नितांत आवश्यक है। ये दिशाएँ पंचतत्वों की होती हैं।प्रस्तुत लेख में मेरे द्वारा वास्तु के सिद्धांतों के माध्यम से  भवन निर्माण में बनने वाले प्रमुख कक्ष जैसे – स्नानघर, पूजा घर, रसोई घर आदि किस दिशा में बनाना गृहस्वामी के लिए लाभदायक सिद्ध होगा इसके बारे में कुछ मुख्य बिन्दुओं को समझाया गया है |
नोट :- निम्नलिखित बिंदु वास्तु के कुछ महत्वूर्ण अंश हैं, अपने भूमि, भवन या व्यवसायिक स्थान का भौतिक निरीक्षण करवाने  के लिये परामर्श करें ज्योतिर्विद् घनश्यामलाल स्वर्णकार  से।
स्नानघर  :-  वास्तु शास्त्र के अनुसार किया गया स्नानघर का निर्माण पूर्व दिशा में इस प्रकार होना चाहिए कि स्नान के समय प्रातः काल की सूर्य कि रश्मियाँ शरीर पर भरपूर पड़ें | स्नान के पश्चात तत्काल वहीं से सूर्य भगवान को अर्घ्य प्रदान करें एवं सूर्य को प्रणाम करें | स्नान घर के साथ शौचालय कभी भी नहीं बनवाना चाहिए| निकास नाली उत्तर या पूर्व की ओर ही निकाले तो ज्यादा बेहतर रहेगा | जल निकासी का बहाव उत्तर या पूर्व में ही ठीक रहता है |
रसोई घर  :-  आग्नेय (दक्षिण-पूर्व) कोण  अग्नि देव का स्थान माना गया है |अतः यही रसोई घर बनाना सर्वोत्तम होता है |वर्जित स्थान पर रसोई घर कभी न बनायें | चूल्हा दक्षिण पूर्व कोने में इस प्रकार रखे की ग्रहणी का मुख भोजन पकाते समय पूर्व दिशा में रहे| उत्तर पूर्व कोने में नल लगाएं एवं पानी की टंकी एवं बर्तन धोने का कुंड (सिंक) हो जिसमें पानी का बहाव उत्तर की ओर हो | रसोई घर में सामान रखने की रैक रसोई घर के दक्षिणी अथवा पश्चिमी भाग में बनाएं |
शयनकक्ष  :- परिवार प्रमुख का शयनकक्ष दक्षिण या दक्षिण पश्चिमी नवांशों में होना चाहिए | छोटे बच्चों के शयनकक्ष पूर्व में तथा अविवाहित युवाओं एवं अतिथियों के शयनकक्ष उत्तर पश्चिम दिशा में बनाएं तो ज्यादा बेहतर रहता है | नवविवाहित दंपति को उत्तरी नवांश में शयन करना चाहिए |परिवार प्रमुख का कक्ष अन्य शयनकक्ष से बड़ा हो|  पलंग अथवा चारपाई पूर्वी या दक्षिणी भाग में इस प्रकार रखे की सराहना दक्षिण की ओर और पैर  उत्तर की ओर ही हो | परिवार वृद्धों के शयनकक्ष दक्षिण दिशा के पश्चिमी नवांशों में बनाना चाहिए |
स्टोर रूम   :- नैऋत्य कोण का नवांश भारी मोटी दीवारों से बनाया जाए | इस कक्ष में  अनुपयोगी अथवा कभी-कभार उपयोग में आने वाली सामग्री,लोहे-लक्कड़ या कबाड़ नैऋत्य कोण के बंद कक्ष में रखा जाना सदैव हितकारी रहता है |
भोजनालय   :- नई पीढ़ी के निवासियों में तो रसोई एवं बैठक से जोड़कर भोजनालय बनाने की प्रथा आमतोर पर देखी जाती  है | परंतु यह स्थान पश्चिमी नवांश के मध्य में सर्वोत्तम होता है | आग्नेय कोण से बना हुआ भोजन लेकर जब ग्रहणी मध्य के ब्रह्मा स्थान से पश्चिम की ओर जाती है तब वह भोजन ब्रह्मा का प्रसाद बन जाता है और वह अत्यधिक ऊर्जा युक्त और सुपाच्य तथा गुणकारी हो जाता है | भोजन पीठ (डायनिंग टेबल) उत्तर पश्चिम या दक्षिण पश्चिम भाग में इस प्रकार व्यवस्थित करें कि भोजन करने वालों के मुख पूर्व तथा उत्तर की ओर ही रहे | दक्षिण मुख करके भोजन वर्जित है, ऐसा कदापि नहीं करना चाहिए | भोजनालय के उत्तरी दिशा में कच्ची भोजन सामग्री एवं अनाज का भंडार घर बनाना वास्तु के अनुसार उचित माना गया है |
तिजोरी   :- मूल्यवान वस्तुएं, आभूषण, नगदी रुपये आदि उत्तरी नवांश के मध्य कक्ष में अर्थात  कुबेर कक्ष में रखें | तिजोरी या अलमारी इस कक्ष के दक्षिणी दीवार से जोड़ कर रखें | जिससे खोलने वाले का मुख दक्षिण की ओर हो और अलमारी उत्तर में खुले | सामान्यतया यह कक्ष शयनकक्ष के रूप में भी उपयोगी होता है जहां घर की मालकिन का प्रभाव रहता है |
 पूजा घर   :- वास्तु शास्त्र में पूजा घर के ऊपर अत्यधिक प्रश्न पूछे जाते हैं कि आखिर पूजा घर किस दिशा में बनाना उचित रहता है ? वास्तु के अनुसार ईशान कोण ईश्वर का स्थान है | यह अधिक खुला, प्रातः की सूर्य किरणों से आलोकित होना चाहिए, स्वच्छ सुंदर-सुवासित और प्रकाशित पूजा घर होना चाहिए| हर घर में जरूरी है पूजा के समय उपासक का मुख पूर्व अथवा उत्तर की ओर होना चाहिए देवी-देवताओं  का स्थान अथवा सिंहासन पूर्व या उत्तरी भाग में हो | यहां रसोई घर या शौचालय सर्वथा वर्जित कहे गए हैं अर्थात कभी भी पूजा घर की दिशा में  रसोई घर या शौचालय का निर्माण नहीं करवाना चाहिए |
अध्ययन कक्ष  :-  स्टडी रूम पश्चिम या दक्षिण पश्चिम नवांश में अध्ययन करना सर्वोत्तम होता है | इस दिशा में अध्ययन करने से बुद्धि का विकास होता है | अध्ययन करने वाले का मुख उत्तर या पूर्व की ओर होना चाहिए| दीवार से लगाकर टेबल कभी नहीं रखनी चाहिए अर्थात दीवार और टेबल के बीच कुछ फासला  होना चाहिए | उत्तरी और पूर्वी दीवारों पर पुस्तकों को रखने की अलमारियां बनाएं तो वह ज्यादा फलदायी सिद्ध होंगी |उत्तरपूर्वी कोने में जल रखें | कक्ष हमेशा साफ, स्वच्छ और सुवासित हो |
शौचालय   :-  शौचालय दक्षिणी नवांश में गृहपति के शयनकक्ष से जोड़कर चाहे तो शौचालय बनाया जा सकता है | अन्यथा शौचालय सर्वथा अलग दक्षिणी दिशा या दक्षिणी नवांश  के पश्चिमी खंड में होना चाहिए |यदि गृह प्रमुख के शयनकक्ष से शौचालय जोड़ते हैं तब कक्ष  के उत्तरी या पश्चिमी भाग में खुलना चाहिए |पानी का  नल और वाशबेसिन सैदव उत्तर पूर्व में  होना चाहिए |
रुग्णालय  :-  ईशान्य के पूजा कक्ष के साथ उतरी नवांश के पूर्व अंश में रोगी और औषधि कक्ष ईश्वरीय ऊर्जा से रोग मुक्त होने में सहायक होता है |
 ड्राइंग रूम यह बैठक कक्ष  :- पूर्व या उत्तर पूर्व में यह बड़ा कक्ष उत्तम होता है इसलिए सदैव इसी दिशा में ड्राइंग रूम बनाना हितकारी एवं लाभकारी सिद्ध होता है |फिर भी भवन की स्थिति के अनुसार परिवर्तन किया जा सकता है |


लेखक –          ज्योतिर्विद्ः घनश्यामलाल स्वर्णकार|
अधिक जानकारी के लिये परामर्श करें ज्योतिर्विद् घनश्यामलाल स्वर्णकार  से।

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