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Showing posts from January, 2019

जानें कब होगा आपका भाग्योदय

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जन्मकुंडली अर्थात मनुष्य के जीवन का पूर्ण सार जिसे राशी एवं नक्षत्रों के आधार पर बांटा गया है  । कुंडली में ग्रहों की स्थिति अच्छी होना तो आवश्यक है ही, भाग्य से संबंधित ग्रहों का शुभ होना तथा उनकी दशान्तर्दशा  का सही समय पर व्यक्ति के जीवन में आना भी उतना ही आवश्यक होता है अन्यथा कुंडली अच्छी होने पर भी यदि कार्य करने की उम्र शत्रु, नीच या पाप प्रभावी  ग्रहों की दशान्तर्दशा में ही व्यतीत हो रही हो तो, लाख प्रयत्न करने के बाद भी उसका फल नही मिल पता | ऐसा क्यों ? प्रत्येक जातक की  कुंडली में  नवम् भाव   को भाग्य भाव भी  माना जाता है। इस भाव में जिस राशि का आधिपत्य होता है, उसके अनुसार  भाग्योदय   का वर्ष तय किया जाता है।इसके साथ-साथ नवम् भाव में स्थित ग्रह और नवम्  भाव पर अन्य ग्रहों की दृष्टि भी भाग्योदय में सहायक सिद्ध होती हैं | शुभ ग्रह का नवम् में स्थित होना भी प्रायः कम उम्र में भाग्योदय को दर्शाता  है | कुंडली में कुल 12 भाव होते हैं और ये 12 राशियों का प्रतिनिधित्व करते हैं | हर भाव का अपना महत्व होता...

जन्म कुंडली में लग्नेश का महत्व

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जन्म कुंडली में लग्नेश के साथ किसी भाव का स्वामी राशि परिवर्तन करें या दूर  दृष्टि संबंध करें तो उस भाव के जातक को अच्छा फल मिलता है | – यदि धनेश के साथ लग्नेश का संबंध हो तो जातक को अच्छी संपत्ति की प्राप्ति होती है तथा पारिवारिक सुख अच्छा मिलता है – यदि तीसरे भाव  के साथ लग्नेश का संबंध होता है तो  जातक प्रत्येक कार्य में पराक्रमी होता है तथा उसे भाई बहन का सुख मिलता है – चतुर्थेश और लग्नेश का संबंध जातक को भवन वाहन सुख अच्छा देता है|  मात्र सुख व मित्र सुख अच्छा मिलता है -पंचमेश का लग्नेश से संबंध जातक को पुत्र पुत्र आदि का सुख देता है शिक्षा में अच्छी सफलता मिलती है उसके कई अनुयाई होते हैं वह संस्थाओं का नेतृत्व करता है – षष्ठेश वह लग्नेश का संबंध होने पर जातक को शत्रु पक्ष पर विजय प्राप्त होती है | शत्रु मैत्री का हाथ बढ़ाता है मुकदमा बाजी में उसे सफलता मिलती है | ननिहाल पक्ष से लाभ होता है – सप्तम और  लग्नेश का संबंध जातक को सुंदर और सुशील पत्नी या पति का योग बनाता है|  विवाहित जीवन आनंद होता है –  अष्टम भाव और  लग्न...

आकस्मिक धन लाभ योग – हेनरी फोर्ड की जन्म-कुंडली का विश्लेषण

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ज्योतिष शास्त्र में धन से सम्बंधित जन्म -कुंडली में चार भाव होते हैं द्वितीय -भाव, पंचम-भाव, नवम -भाव, तथा एकादश -भाव| जन्म -कुंडली में नवम-भाव को भाग्य-स्थान भी कहते हैं | अतः भाग्य-स्थान प्रबल होने पर ही जातक को धन प्राप्ति होती हैं , अन्यथा नहीं | जन्म-कुंडली में एकादश भाव से लाभ देखा जाता है | द्वितीय -भाव से धन-सम्पति का विचार किया जाता है |पंचम-भाव, संचित -भाव कहलाता है |अत: इन भाव की स्थिति कुंडली में अच्छी होने पर धन का लाभ होता है | साथ ही इन चारों भावों के कारक बृहस्पति की स्थिति भी अच्छी हो तो उसे विपुल धन प्राप्त होता है | जन्म कुंडली में निम्न लिखित योग होने पर भी जातक को लॅाटरी व अन्य स्त्रोतों से धन लाभ होता है | लाभ -भवन का अधिपति ग्रह भाग्य-भवन में हो और भाग्य-भवन का अधिपति ग्रह लाभ-भवन में हो |लाभ-भवन का स्वामी ग्रह धन-भाव में हो और धनेश लाभ-भवन में हो | भाग्येश धन-भाव में हो और धनेश भाग्य-भवन में हो |इन भावों के स्वामी ग्रहों की युति केंद्र-त्रिकोण अथवा शुभ भावों में हो तो भी धन लाभ अच्छा होता है | प्रस्तुत जन्म-कुंडली में पंचम-भाव, द्वितीय -भाव, एकादश...

व्यवसाय निर्धारण में ज्योतिष का योगदान

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प्रस्तुत लेख मेरी प्रकाशित पुस्तक ” ज्योतिष समीक्षा ” का एक अंश है | Business through Astrology व्यक्ति की आजीविका के स्रोत क्या – क्या हो  सकते हैं  ? उसका क्या व्यवहार हो सकता है ?, उसे कितने व्यवसायिक कार्यो से गुजरना पड़ेगा ? वह किस व्यवसाय में कब सफलता प्राप्त कर सकता है ? उसका कार्य शारीरिक होगा या मानसिक अथवा दोनों ही होंगे ? यह एक जटिल प्रश्न है | ज्योतिष की प्राचीन पुस्तकों में व्यवसाय से सम्बंधित जो नियम व सिद्धांत प्रतिपादित है वे सब देश काल और परिस्थितिवश वर्तमान भौतिक परिवेश में बदल चुके है | इसके लिए लग्न , द्वितीय , चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम, दशम एवं एकादश भाव एवं भावेशों की प्रक्रति, स्थिति एवं बलाबल  पर विशेष विचार किया जाना आवश्यक है | इसके अतिरिक्त  शनि, राहु, गुरु एवं बुध कि स्थिति  को भी अध्ययन में सम्मिलित करना पड़ेगा  | गुरु एवं बुध का सम्बन्ध बुद्धि एवं विद्या  से विशेष है | इसी प्रकार शनि का सम्बन्ध शारीरिक श्रम से है तथा राहू का सम्बन्ध अद्भुतता तथा विभिन्न आयामों से है | ये ग्रह स्थान विशेष के स्वामी ...

पुष्य नक्षत्र – एक सहज चिंतन

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  पुष्य नक्षत्र का स्वामी ग्रह शनि और देवता बृहस्पति है | यह नक्षत्रों में राजा माना जाता है | इसमें समस्त कार्यों की सिद्धि होती है |पुष्य – चर-स्थिर , शांति, उत्सव सम्बन्धी कार्य, विवाह को छोड़कर शुभ होते हैं |पुष्य नक्षत्र में तारों की संख्या 3 होती है | गुरूवार को पुष्य नक्षत्र होने से समस्त कार्यों में  सिद्धिदायक , अमृत सिद्धि योग होता है |ग्रहों की स्थापना पुष्य नक्षत्र में आना  शुभ रहता है | आकाश में कांति मंडल को 27 तुल्य भागों में विभाजित कर प्रत्येक खंड में आने वाले तारों के समूह को एक नक्षत्र की संज्ञा दी गयी है |प्रत्येक नक्षत्र समूह के किसी प्रमुख तारा को उस नक्षत्र का केंद्र मान कर वेधादि कार्य किये जाते हैं , जिसे योग तारा कहा जाता है | पुष्य नक्षत्र पाप ग्रह से दृष्ट या युक्त होने पर भी पुष्य नक्षत्र बलवान होता है जैसे समस्त जीवों में सिंह बलवान होता है , उसी प्रकार समस्त नक्षत्रों में यह बली  होता है |इसलिए गोचर से इस नक्षत्र में चंद्रमा के विपरीत होने पर भी कार्यों की सिद्धि बलवत्ता के कारण होती है | पुष्य नक्षत्र  नक...

जानें ग्रहों की राशि और उनकी महादशा

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किस ग्रह की राशि कौन सी है व  इनकी महादशा कितने वर्ष की होती है। आइए जानें। सूर्य की सिंह राशि, मंगल की मेष व वृश्चिक, बुध की मिथुन व कन्या, गुरु की धनु व मीन, शुक्र की वृषभ व तुला, शनि की मकर व कुंभ राशि होती है। सूर्य की मूल त्रिकोण राशि सिंह, चंद्र की वृषभ, मंगल की मेष, बुध की कन्या, गुरु की धनु, शुक्र की तुला व शनि की मूल त्रिकोण राशि कुंभ है।  सूर्य की महादशा 6 वर्ष की होती है तो चंद्र की 10 वर्ष। मंगल की 7 वर्ष, बुध की 17 वर्ष, गुरु की 16 वर्ष | शुक्र की सर्वाधिक 20 वर्ष, शनि की 19 वर्ष | राहु की 18 वर्ष तथा केतु की 7 वर्ष की महादशा होती है। कोई भी महादशा प्रारंभ हो तो उसी की अंतर्दशा पहले चलती है। यह समझने के लिए गुरु की महादशा में गुरु का अंतर चलेगा। इसके बाद शनि, बुध, केतु, शुक्र, सूर्य, चंद्र, मंगल व राहु की अंतर्दशा चलेगी। महादशा में अंतर्दशा में प्रत्यंतर दशा भी उसी ग्रह की चलेगी जिसकी महादशा प्रथम चलती हो।  विंशोत्तरी  दशा क्रम में 9 ग्रहों का क्रम सदैव सूर्य, चन्द्र, मंगल, राहु, गुरु, शनि, बुध, केतु, शुक्र ही रहेगा | पहले के स...

विभिन्न रत्नों के विशेष फल एवं प्रभाव

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रत्न शब्द का प्रयोग श्रेष्ठ के अर्थ में किया जाता है | जो वस्तु या पदार्थ अपने वर्ग में श्रेष्ठ हो उसे रत्न की संज्ञा दी जाती है |जैसे मनुष्यों में श्रेष्ठ पुरुष को ” नररत्न” कहा जाता है | फिर भी इस श्रेष्ठता को खनिज, वनस्पति और जलीय पदार्थ समूह तक सीमित रखकर विचार किया जाएगा | जैसे सुंदर पदार्थ को देखकर सभी प्राणी प्रसन्न हो जाते हैं और जो अपनी जाति में श्रेष्ठ होता है उसे रत्न कहते हैं | रत्नों के भेद व प्रकार   :-   अंग्रेजी में रत्नों को Precious Stone और उपरत्न को Semi Precious Stone कहा जाता है | उत्पत्ति एवं प्राप्ति स्थान की भिन्नता के कारण रत्नों को तीन वर्गों में रखा जा सकता है| खनिज उत्पादित जाति के रत्न जैसे हीरा, माणक, नीलम इत्यादि | जैविक रत्न (प्राणिज) जैसे मोती आदि | वनस्पतिज जैसे कहरवा | रत्नों के विशेष गुण   :- रत्न विशेषकर खनिज वर्ग के रत्न,  कठोर व चिकने और आभा वाले होते हैं | प्रकाश रश्मियों के परावर्तन करने की इनमे अद्भुत क्षमता होती है इसलिए प्रकाश का संपर्क प्राप्त कर के यह और भी अधिक चमकने  लगने लगते  है...